गुरुवार, 27 जून 2019

तुम्हारी कविता एक बगिया है....

तुम्हारी कविता में
खुश्बू है, फूल हैं
पत्तियां, टहनी भी
एक माली है 
जो करीने से संवारता है
शब्दों के नन्हे पौधे
देता है भावों की खाद
उखाड़ फेंकता है
अनचाहे विचारों की
खरपतवार...
निदाई, गुड़ाई करता है
ताकि पनप सकें
उम्मीदों की लतायें
और रखवाली भी करता है
कि कभी कोई तोड़ न ले
अधखिली कलियां कहीं
तुम्हारी कविता एक बगिया है
सतरंगी सपनों के फूलों से भरी ...

धरती माता के हर श्रृंगार को सहेजें ....

ईश्वर ने हमें सुंदर धरती प्रदान की। हमारे पूर्वजों ने इसे सहेजा हमारे लिए। धरती को माँ का सम्मान दिया, प्रकृति को हर रूप में पूजा, वृक्षों को, नदियों को यहाँ तक की पशु पक्षियों को त्योहारों, पर्वों से जोड़कर यही सीख देने का प्रयास किया।
लेकिन हमने आधुनिकता की होड़ में सबकुछ भुला दिया। अगर कुछ याद भी रखा तो सिर्फ नाम के लिए प्रतीकात्मक रूप से। गाँव से शहर भागा, जंगल उजाड़े, कॉंक्रीट के जंगल बसाए, पर्यावरण को दूषित करने में कोई कसर बाक़ी न रखी, प्रदूषण फैलाए।
लेकिन सुकून फिर भी न पा सका। फिर भागने लगा है यही इंसान शहर से गाँव की ओर, ढूंढ़ने लगा है पेड़ों की शीतल छाँव, कल-कल बहती नदियों, झरनों का संगीत, पक्षियों का कलरव, खुला नीला तारों भरा आसमान।
ये ऊपरी चमक-धमक ये आधुनिक सुख हमें वह आत्मिक सुख नही दे सकते जो धरती की गोद में, प्रकृति के सानिंध्य से मिलता है, तो क्यों न धरती माता के हर श्रृंगार को सहेजे और मानवता को विनाश से बचाने में हर सम्भव प्रयास करें।
#विश्वपृथ्वीदिवस