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नही होता जीवन का
हर हाल में
ज़ारी रहता है सफ़र
रुक-रुक कर शनै: शनै:
अब इच्छा है लौटने की
हो सकता है कुछ
बदलाव हो मुझमे
तो हैरान न होना
स्वीकारा है मैंने
प्रकृति का नियम
तुम भी मुझे
ऐसे ही स्वीकारना
उस पुष्प की तरह
भले बदला हो
जिसका स्वरुप
खुशबू वही होगी
बस तुम अपनी
दृष्टी में रखना
वही विश्वास
गौधूली वेला में
जो अब तक
मेरी पहचान रहें हैं...