सोमवार, 26 मार्च 2012

किनारा... संध्या शर्मा

डूबने के भय से
तैरना छोड़ दूँ
इतनी कमजोर नहीं
हाँ! तय कर रखी है
एक सीमा रेखा
उसके आगे नही जाना
जानती हूँ
सागर असीम, अनंत
पार नहीं कर सकती हूँ
लेकिन हार नहीं मान सकती न
जीना चाहती हूँ
उस आलौकिक क्षण को
जब तैरना सीख जाउंगी
उतर जाउंगी उस पार
सीमित होकर भी
असीमित में विलीन
आकार से निराकार
शायद उसी दिन
मिल जायेगा किनारा...

गुरुवार, 22 मार्च 2012

एक अमूल्य सार्थक टिप्पणी.... संध्या शर्मा

अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता हमें क़ानूनी रूप से मिली और हम इसी स्वतंत्रता के तहत ब्लॉग लेखन कर अपने विचारों को आम पाठकों तक पहुंचाते हैं। पाठकों एवं ब्लॉगर्स के विचार हमें ब्लॉग पर टिप्पणियों के माध्यम से देखने को मिलते हैं। टिप्पणियां सभी ब्लॉगर्स के लिए उर्जा का काम करती हैं एवं विचार विनिमय के पश्चात सार्थक सृजन का मार्ग प्रशस्त करती हैं. टिप्पणियों की माया है कि ये रचनाकार का उत्साह भी बढा सकती हैं और उसे हतोत्साहित भी कर सकती हैं एवं पाठक एवं रचनाकार के मध्य सवांद का माध्यम भी हैं।
मन में कुछ करने कुछ लिखने की दृढ इच्छा और आत्मविश्वास से मैंने इस ब्लॉग जगत में प्रवेश किया और मेरे कवि मन के अपने आप-पास जो भी देखा महसूस किया अपनी भावनाओं को प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से कविताओं के माध्यम से अभिव्यक्त किया. मेरी रचना को पाठकों ने सराहा और टिप्पणियों के रूप में अपना मार्ग दर्शन दिया, इससे मेरा उत्साहवर्धन हुआ और सार्थक टिप्पणियों के लिए ह्रदय से आभारी हूँ.
रचना करना रचनाकार का धर्म है, सभी रचनाकार स्वांत: सुखाय रचना करते हैं। अक्षर-अक्षर जब जुड़ कर शब्द बनतें और शब्द वाक्य में परिवर्तित होते हैं तो रचना का जन्म होता है। रचनाकार के भाव उसके सृजन कर्म से प्रकट होते हैं। सृजन करते समय उसकी जो मन: स्थिति होती है वह उसकी रचना में परिलक्षित होती है। जो भाव मन में उमड़ते वे रचना का रुप धरते हैं। ऐसे ही हमारी रचना को पढ़कर उस पर बिलकुल वैसे ही भाव से अपने विचार व्यक्त करता है जिन भावों पर केन्द्रित होकर रचना की थी, तो हमारी प्रसन्नता का ठिकाना नहीं होता, सृजन सार्थक हो जाता है, हम अपने विचार पाठकों तक पहुँचाने में अपने आप को सफल मानते हैं.
ब्लॉग जगत में मैने देखा है कि कामन टिप्पणियों का बड़ा जोर है। सभी ब्लॉगों पर एक जैसी टिप्पणियाँ ही देखने को मिल जाती है। कभी कभी ऐसी निरर्थक टिप्पणियाँ होती है जिनका रचना से कोई सरोकार नहीं होता। सिर्फ़ हाजरी बजाने वाला ही कार्य दिखाई देता है। परन्तु यदि कोई रचना को केन्द्रित करते टिप्पणी करता है तो रचनाकार का लेखन भी सार्थक हो जाता है और उसे भी अपने कार्य से संतुष्टि मिलती है। कुछ ऐसा ही मुझे अपनी पिछली पोस्ट "रच दूंगी मै संसार निराला" में देखने को मिला. बहुत लोगों ने मेरी इस रचना को अपने-अपने तरीके से सराहा और टिपण्णी की लेकिन एक ऐसी टिप्पणी भी इस पोस्ट पर आई जिसने मुझे एक पोस्ट लिखने के लिए मजबूर कर दिया, और वह टिप्पणी थी ब्लॉगर ललित शर्माजी की. 

जिस शक्ति ने रची थी सृष्टि 
प्रलयोपरांत रचेगी फ़िर से 
शुन्य में स्वर झंकृत होगा 
मौन मुखर फ़िर होने वाला 
नंदन वन में सोन चिरैया 
गीत मधुर गाएगी फ़िर से 
रची जाएगी फ़िर मधु से 
नव गीतों की मधुरं हाला 

ये माटी की रचना माटी से 
मातृ शक्ति रच दे फ़िर से
फ़िर चाहे हो बारम्बार प्रलय 
मानव नही है डरने वाला
प्रणम्य है वह मातृ शक्ति 
जो रचती है फ़िर फ़िर से 
उस आंचल की छांह तले 
नाचे जग मग मतवाला 
केनवास पर जैसे किसी चित्रकार ने स्वर्ण तूलिका से रच डाली सृष्टि । सृष्टि का जनक शायद ऐसे ही कहता होगा। सबको ढांढस बंधाता होगा………हो जाने दो महाप्रलय। मुझे रचना आता है। यह तो नश्वर लोक है प्राणी। बस तू आता जाता है। न जाने कितनी बार रची सृष्टि मैने……… कितनी बात प्रलय आया। बहुत ही भावपूर्ण कविता है। नवीन सृष्टि की रचना करने की आकांक्षा अटूट विश्वास को प्रकट करती है। हे! मातृ शक्ति इस सृष्टि को रचा ही है तूने………… महाप्रलय के पश्चात भी रच सकती है……………मेरा कवि मन अपने को रोक नहीं पाया…… कुछ कहने की इच्छा कर बैठा………आभार"
उनके कवि मन ने हमारी रचना के मूल भाव को एक सुन्दर कविता और अमूल्य शब्दों के माध्यम से इतनी अच्छी तरह व्यक्त किया है। हमारी रचना को उनकी इस अद्भुत टिप्पणी ने सार्थकता प्रदान की है, निश्चित रूप से आप हम सभी ब्लॉगरों के लिए प्रेरणा स्त्रोत हैं, आप एक रचनाकार, लेखक कवि होने के साथ-साथ एक कुशल टिप्पणीकर्ता भी हैं, आशा करते हैं कि आगे भी इसी तरह हमारा प्रोत्साहन करते रहेंगे... आपका ह्रदय से आभार !

मंगलवार, 20 मार्च 2012

"वो खुदा बन गया".... संध्या शर्मा

 
अब हँसने और मुस्कुराने के दिन हैं,
ये तो मेरे महबूब के आने के दिन हैं.

देखो मीर ओ ग़ालिब दे रहे हैं सदा,
गीत-औ-ग़ज़ल गुनगुनाने के दिन हैं.

चश्म-ए-नम से कहो आंसू न गिराएं,
ये दरया-ए-मोहब्बत बहाने के दिन हैं.

उस शब-ए-हिज्र से है नाता ही कैसा,
अब तो रंगीन सपने सजाने के दिन हैं.

खुशकिस्मती बहारों की बनी हमसफ़र,
दोनों हाथों से खुशियाँ लुटाने के दिन हैं.

रफ्ता-रफ्ता वो मेरा खुदा बन गया
हैं,
सजदे में उसके सिर झुकाने के दिन हैं.


शुक्रवार, 16 मार्च 2012

रच दूंगी मै संसार निराला -------- संध्या शर्मा


महाप्रलय से भयभीत न होना
रच दूंगी संसार निराला
दुनिया की तस्वीर बना दूँ
जो रंग कोई हो भरने वाला


महाप्रलय से भयभीत न होना
रच दूंगी मैं संसार निराला

सतरंगी किरणें उतरेंगी
हर्ष का होगा नया उजाला
नए खग नए तरुवर होंगे
नया जग होगा मतवाला

महाप्रलय से भयभीत न होना
रच दूंगी मैं संसार निराला

सांच झूठ का नाम न होगा
होगी नई रवि की ज्वाला
 कोई अर्थ न दे पायेगी
अहंकार की अब मधुशाला

महाप्रलय से भयभीत न होना
रच दूंगी मैं संसार निराला

करुण कथा तेरे विनाश की
कोई न होगा सुनने वाला
विष का सृजन बहुत हो चुका
भर जाने दो अमृत प्याला

महाप्रलय से भयभीत न होना
रच दूंगी मैं संसार निराला

नयी सुबह और नए जगत का
अवसर नहीं अब टलने वाला
फ़िर झूम कर नाचे गाएगा
मधुर- मधुर बांसुरी वाला

महाप्रलय से भयभीत न होना
रच दूंगी मैं संसार निराला

बुधवार, 7 मार्च 2012

अबके होली में सांवरिया... संध्या शर्मा

आप सब को सौहद्रतापूर्ण होली की हार्दिक शुभकामनाएं...
स्नेह और आपसी भाईचारे का रंग छलकाएं..
प्रकृति के हित को ध्यान में रखकर होली मनाएं ... 
 .
अम्बर की मैं ओढूं चुनरिया 
गहरी नीली-नीली 
हरे-हरे मन में फूली है
सरसों पीली-पीली 
लाल-गुलाबी, नीले-पीले
रंगों की अठखेली
मन बहका ये खनके कंगन
अरमानो की रोली
महके महुआ, दहके टेसू
बात कहें अनबोली
कोई रंग का भाये मोहे
कैसे खेलूं होली
चढे न इसपे कोई भी रंग
रही चुनरिया कोरी
रंग लो तुम अपने रंग में 
तब होली लागे होली
अबके होली में सांवरिया
भर दो रंग से झोली....