शुक्रवार, 29 नवंबर 2013

दर्द...!!!


भरोसे के छल में लिपटे 
जितने तीर थे
वक़्त के तरकश में
सारे के सारे
छोड़े जा चुके
वज़ूद की पीठ पर
छलनी हो चुके
तार-तार हो चुके
भोले-भाले वज़ूद को
इतनी आदत सी हो गई है
इन छली तीरों की
यदि दर्द ना मिले
तो दर्द होता है
ऐसा लगता है
जैसे ये जख्म नहीं रहे
दवा हो गए हों...

गुरुवार, 14 नवंबर 2013

फूलों के मौसम में...


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शाम अभी ढली नही
सुबह अभी हुई नही
आओ करें इंतज़ार 
गुनगुनी सी धूप में
ठंडी-ठंडी बयार का
ढलती हुई शाम का
धुंधली सी सुबह का
रूठी सी चांदनी में
खोये से चाँद का
फूलों के मौसम में
झूमती बहार का...

गुरुवार, 7 नवंबर 2013

यादें हर सांस में...


यह सोचे बगैर कि
जब कोई सवाल करेगा
निरुत्तर हो जाउंगी
लिख लेती हूं तुम्हारी यादों को
रख लेती हूं संदूक में तह लगा
रेशमी अहसासों को
कि वक़्त की बुरी हवा न लगे कभी
सहेज ली है एक याद आज
इत्र की खूबसूरत सी शीशी में
कि जब भी चाहूँ
तुम बिखर जाओ मेरे जीवन में
खुशबू की तरह
घुल जाओ मेरी हर सांस के साथ
गमक उठे
मन प्राण आत्मा
रोम-रोम पर छाई मधुर गंध
सांसों में घुल जाए
बन जाए 
हरियाली जीवन की
अमर हो जाये प्रीत
गगन - धरा सी 
धरातल पर.......