सोमवार, 24 जून 2013

स्थायित्व पाना है...?... संध्या शर्मा

"बीत गई सो बात गई"
भरोसा न करना
इस कथनी पर
सिर्फ धोखा है
भूतकाल निश्चित
वर्तमान अनिश्चित
भविष्य में क्या होगा
न तुम जानो न हम 
जीवन समन्दर किनारे बने 
वर्तमान रुपी रेत के टीले को
भविष्य रुपी एक लहर 
पल में बदल देगी
समतल मैदान में
कैसे सुरक्षित रखोगे
अपने आप को
इस लहर के आवेग से?
एक दिन.... !
तुम्हे भी भूत होना है
स्थायित्व पाना है...?
वर्तमान के धरातल पर
मजबूती से खड़े होकर
भूतकाल से सीख लेकर
भविष्य की ओर
आशा से निहारो...!

गुरुवार, 6 जून 2013

व्याकुल पीड़ा ... संध्या शर्मा


....
कांक्रीट के जंगल में
अकेला खड़ा वटवृक्ष
भयभीत है...?
व्याकुल है आज
चौंक उठता है
हर आहट से
जबकि जोड़ रखे हैं
कितने रिश्ते - नाते
सांझ के धुंधलके में
दूर आसमान में
टिमटिमाते तारे
शांत हवा के झोंके में
गूंजता अनहद नाद
पाकर धरती का
कोमल स्पर्श
ना जाने क्यूँ
छलक उठे हैं
उसके मौन नयन...