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कांक्रीट के जंगल में
अकेला खड़ा वटवृक्ष
भयभीत है...?
व्याकुल है आज
चौंक उठता है
हर आहट से
जबकि जोड़ रखे हैं
कितने रिश्ते - नाते
सांझ के धुंधलके में
दूर आसमान में
टिमटिमाते तारे
शांत हवा के झोंके में
गूंजता अनहद नाद
पाकर धरती का
कोमल स्पर्श
ना जाने क्यूँ
छलक उठे हैं
उसके मौन नयन...