सोमवार, 30 जुलाई 2012

खासियत हमारी...संध्या शर्मा



जीने की चाहत ना मरने की फुर्सत,
गुजरेगी कैसे ज़िन्दगानी हमारी.
 
अदावत किसी से ना कोई गिला,
है बस यही एक खासियत हमारी.

भला न किया तो बुरा भी ना करना,
सिखाती है हमको तरबियत हमारी.

बहुत फर्क है फिर भी है एक जैसी,
ना पूछो हमीं से वल्दियत हमारी.

मेरे पास ए ज़िंदगी अपना क्या है,
एक सांस थी अब रही ना हमारी.

शिद्दतों सहेजे हैं ग़म हमने अपने,
हमीं जानते हैं असलियत हमारी.

 हम क्या करेंगे हसरत किसी की,
हम को तो दरकार नहीं खुद हमारी.

बुधवार, 25 जुलाई 2012

तू गुमान है मेरा...



उजाले खड़े हैं राह में
तेरे इंतज़ार में
बुलंद हौसलों की कश्ती
समंदर में उतार दे
तेरे इरादों की पतवार
पार कर लेगी हर समंदर
सुना है मंजिल की चाहत
मुश्किल आसान कर देती है
राह चाहे कितनी भी दुश्वार हो
मंजिल की ओर मुड़ जाती है
क्या हुआ जो वक़्त की धुंध छाये
आंधी चले या तूफ़ान आए
तू चल देख अब मंजिल करीब है
अपने ही हाथों लिखना अपना नसीब है
कुछ देर और शायद इम्तेहां है तेरा
सितारों के बीच तू आफ़ताब है मेरा
बस इतना समझ ले तू गुमान है मेरा
तू ख्वाब है मेरा, सारा जहान है मेरा...

शनिवार, 21 जुलाई 2012

मुक्ति...?---- संध्या शर्मा


जन्म से आज तक 
हर नाता हर रिश्ता
मांगता रहा मुझसे
बीत गया जीवन
पूरी करते अपेक्षा
ख़ुशी से देह छोड़
बनना पड़ा शिला
धूप हवा बारिश
सब झेलकर भी
अपेक्षा के भार से
मुक्त रहा युगों तक
अचानक एक दिन
खंडित किया मुझे
ले आये उठाकर
रहा अब भी पत्थर
लेकिन मंदिर का
तब से कतार है
मेरे समक्ष लम्बी
दिन - रात मांगते
लोग कुछ न कुछ
फिर दबाने लगे
अपेक्षाओं तले
अपेक्षाओं तले दबकर
फूट जाऊँगा एक दिन
उड़ जाऊंगा माटी बन
दसों दिशाओं में
समाप्त हो जायेगा
मेरा अस्तित्व
उड़ेगा धूल बन
हवा के संग - संग
क्या वही होगी 
सच्ची मुक्ति...?

सोमवार, 16 जुलाई 2012

रंगमंच... संध्या शर्मा

करती हूँ अभिनय
आती हूँ रंगमंच पर प्रतिदिन
भूमिका पूरी नहीं होती
हर बार ओढ़ती हूँ नया चरित्र
सजाती, संवारती हूँ
गढ़ती हूँ खुद को
रम जाती हूँ रज कर
कि खो जाये "मुझमे"
"मैं" कहीं....

अब तो हो गई है आदत
किरदार निभाने क़ी
हर आकार में ढल जाती हूँ

पानी सी.....
पहचान खोकर शायद
पा सकूँ खुद को
समंदर में सीप तो बहुत मिल जाते हैं
सीप में मोती हर किसी को नहीं
मिलता...

शनिवार, 14 जुलाई 2012

वरदान... संध्या शर्मा

आज अचानक 
वट - वृक्ष बोल पड़ा
सुनो कुछ कहना चाहता हूँ
अनंत काल से खड़ा हूँ
एक ही जगह, तुम्हारे बांधे
कच्चे सूत्रों के बंधन से बंधा 
मजबूती से पाँव जमाये
जब सावित्री ने यमराज से
पतिप्राण वापस पाए थे
तब से....
तभी से साक्षी रहा हूँ
तुम्हारे व्रत का
अखंड सौभाग्य के वरदान का
देवियों....!
अब बूढा हो चुका हूँ मैं
बस मेरे लिए इतना करना
इस बार की पूजा में
यमराज से एक वरदान मांगना
मेरी बरसों की तपस्या के बदले
मेरे लिए भी जीवन दान मांगना
खूब थक गया हूँ
खड़े-खड़े
नहीं तो मैं भी सो जाऊंगा
धरती से पीठ टिकाकर
अनंत निद्रा में
बोलो...
करोगी ना मेरे लिए इतना...?

गुरुवार, 12 जुलाई 2012

दायरे...संध्या शर्मा

जन्म से पूर्व 
माँ के गर्भ से
आदत बन गया
दायरे के भीतर जीना
जीते रहे इसी दायरे में
साथ-साथ  जीते-जीते
हिस्सा बन गया जीवन का 
जन्म के बाद भी
मुक्त ना हो सके
कई बार सोचा
मुक्त हो जाऊं
खुलकर सांस लूँ
स्वयं की मालिक खुद बनूँ
क्यों न तोड़ दूँ इसे
इससे बाहर निकलूं
जीकर देखूं कुछ पल
लेकिन ऐसा हो ना सका
भला एक इन्सान की
इन पक्षियों के साथ 
कैसी बराबरी
स्वीकार है मुझे यह संग
जीवन के तमाम रंग
  यहाँ कभी कुछ मिलता है
कुछ नहीं भी मिलता है 
बस दुःख इस बात का है
धरती का प्रेम मिला 
पर खुला आसमान नहीं ...

सोमवार, 9 जुलाई 2012

अंजुरी में धरती ... संध्या शर्मा

मान गए बादल रूठे  
बरसे तो जमकर बरसे 
धरती रही
फिर भी प्यासी
व्याकुल हो उठा मन
देखकर व्यर्थ जाता
जीवन जल
ऐसा लगता है
वर्षा का सारा जल
भर लूँ अंजुरी में 
ताकि....!
ना बह सके
ना बिखरे
ना व्यर्थ हो
एक भी बूँद
हर एक बूँद
धरती में समाये
लहराए इठलाये
नदी बन जाये
सजाये प्रकृति का स्वरुप 
निखरे उसका रंग - रूप 
खिले कोपल तरुवर पर
गूंजे कोयल का स्वर
पवन स्पर्श से
जैसे बिखरे गुलाल 
सुन्दर फूलों से
शोभित हो हर डाल
फैली हो हरियाली चहुँ ओर
नाच उठे धरती का मनमोर...!

मंगलवार, 3 जुलाई 2012

जीवन के रंग.... संध्या शर्मा

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संध्या वेला 
जीवन की
हिसाब लगाया
कितना कमाया
क्या गंवाया

कमाया...?
धन, ऐश्वर्य, मान
गंवाया ...?
स्नेह - सुख,
अपनों  का साथ

आयु घटी
बढ़ा धन
अपने हुए दूर
हाथ लगे
बस चार क्षण 

दुःख मनाऊँ, अभिमान करूँ
या स्नेह दूँ, सुख दूँ उन्हें
जो कबके आगे निकल गए
मुझे अकेला छोड़ किनारे 
नफे घाटे का हिसाब जोड़ते ....

मन में आस है
दूर तलक जाने का
विश्वास है 
चार पल ही सही
जीवन है यही

कोई न हो न सही
निस्संग हूँ
नहीं हूँ एकाकी
मेरा मन
मेरा साथी...