मंगलवार, 27 जनवरी 2015

पुरानी ज़िद...


अक्षर अक्षर 
शब्द मेरे  
जानती नहीं 
कब हो गए 
भाव तुम्हारे  
इस सफ़र का
पता ही न चला 
करने लगे हो 
मेरे ही मन में 
खूब मनमानी 
और देखो न 
इठलाती इतराती
अल्‍हड़ बच्ची सी
मैं आज भी 
लगी रहती हूँ 
तुमसे अपनी 
हर बात मनवाने की 
उसी पुरानी ज़िद में
नई नई ज़िद लेकर....

शनिवार, 24 जनवरी 2015

हे री सखी बसंत है आयो....


हे री सखी बसंत है आयो
झूमे लीम लीम की डारी, बरगद है हरियायो
गेंदा संग चमेली फ़ूली, रंग चहूं दिसि छायो।
हे री सखी बसंत है आयो।

हिय जली आग लगन की, जब उन बिसरायो
काग मुंडेर पे बैठ के बोलो, पिय संदेशा लायो।
हे री सखी बसंत है आयो।

मोरे आंगन की खिलगी क्यारी न्यारी प्यारी
जब परदेश की खबरिया कारो कागा लायो
हे री सखी बसंत है आयो।

नार - कचनार हुलसी, हुलस- हुलस सतायो
दूर देश में हमार बलम, यहाँ बसंत तू आयो
हे री सखी बसंत है आयो।

चलो बांध लो गांठ प्रीत की आम बौर गदरायो
बाट बटोही की देखे पलास बसंत अगन लगायो
हे री सखी बसंत है आयो।  

बुधवार, 14 जनवरी 2015

संक्रांति - सिन्दूर सहेजती माँ ...

संक्रांति के एक दिन पहले
खूब सारा दूध कंडे की आग में
गुलाबी गाढ़ा होने तक पकाती,
फिर मिट्टी के बर्तन में उसी दूध से
मलाईदार दही जमाती थी माँ
संक्राति के दिन सबको
चूड़े (पोहे), गुड के साथ खिलाती
तब ना जाने क्यों मुझे
खाना अच्छा नही लगता था
शायद खूब सारा देखकर
अघा जाते होंगे हम
और लड्डुओं की तो ना ही पूछो    
सफ़ेद तिल, काली तिल, मूंगफली
मुरमुरे, आटे में बेसन के सेव डालकर
और जाने कितने तरह के बनाती
चूड़ी, बिंदिया, महावर, बिछुए
सुहागिनों को उपहार देती
कोई भी कमी ना रखती
किसी भी बात में
ऊपर से कोई रोक - टोक न करती
खिलाना हो या लेना - देना
इतनी खुले मन और विचारों वाली माँ
एक जगह बड़ी कंजूसी करती
थोड़ा सा सिन्दूर और दो-दो चूड़ियाँ
बस यही सिंगार थे उसके
एक दिन पूछ बैठी मैं कारण
तो समझाते हुए बोली
"देख! सिन्दूर सहेजती हूँ मैं
थोड़ा-थोड़ा सा खर्च करती हूँ
ताकि अपनी पूरी उम्र पा सकूँ
यही सीख मुझे मेरी माँ से मिली
और मैं तुझे दे रही हूँ "
सचमुच सर्दी की गुनगुनी सी धूप सी माँ
अपने घर परिवार आँगन को सजाकर
सिंदूरी चूनर ओढ़े साँझ की तरह
लाल बिंदिया माथे पर सजाए
संतोष भरी मुस्कान के साथ
चली तो गई दूर हमसे
लेकिन १५ वर्ष होने को हैं
आज भी सहेजे हुए है
हम सबके लिए अपने सुहाग को
और साथ है हमारे पापा के रूप में ....

उत्तरायण का सूर्य आप सभी के जीवन में नव ऊर्जा एवं उल्लास भर दे।  आप सभी को मकर संक्रांति, खिचड़ी, बिहू, पोंगल व लोहड़ी की बधाई...