बुधवार, 13 मई 2015

जीवन पथ ...

हर सुबह के इंतज़ार में 
अंधियारे से लड़ना है
हर पल घटती सांसें हैं
पल को जीभर जीना है
हर रिश्ते हर नाते को
राख यही हो जाना है
झूठे जग का मोह त्याग
उस पार अकेले जाना है ....
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भीड़ चहूँ ओर है
हर तरफ शोर है
रिश्तों के मेले हैं
अपनो के रेले हैं
दुनिया के खेले हैं
फिर भी अकेले हैं... 




17 टिप्‍पणियां:

  1. सच है.कभी कभी हम भीड़ में अकेले से लगते हैं....भाव पूर्ण रचना

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  2. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 14 - 05 - 2015 को चर्चा मंच की चर्चा - 1975 में दिया जाएगा
    धन्यवाद

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  3. एक शाश्वत सत्य...बहुत सुन्दर और भावपूर्ण प्रस्तुति...

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  4. दुनिया के खेले हैं
    फिर भी अकेले हैं... sachhi baat ji

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  5. क्या कहूँ संध्या जी...बहुत खूब हमेशा की तरह..

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  6. sach yahi hai, jise samajhne mein hm sari umra laga dete hai.

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  7. यह समझ में आ जाये तभी सही जीवन शुरू होता है

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  8. अकेलापन मन की स्थिति है ... भीड़ तो होती है आस पास पर मन भी साथ हो तो भीड़ है नहीं तो अकेलापन ... गहरी भावपूर्ण रचना ...

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  9. भावपूर्ण रचना ,आपको बहुत बधाई

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  10. दुनिया के मेले में आये भी अकेले थे जाना भी अकेले है |भावपूर्ण रचना

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  11. ...बहुत सुन्दर प्रस्तुति के साथ शाश्वत सत्य

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