उर की अनंत गहराइयों में
बिन खाद पानी के जन्मे
बीज होते है स्वप्न
जब बीज है तो पनपेगा
फूलेगा फलेगा
और आकार लेगा
विशाल वृक्ष का
जब वृक्ष होगा
तो घोंसले भी होंगे
जब घोंसले होंगे
चहकेंगें फुदकेंगे पंछी
होगा कलरव गान
स्वप्न तो स्वप्न होते हैं
परिश्रम और कर्म से सींच
लहलहाना होगा इन्हें
यदि यथार्थ में सुनना है
इन पंछियों का खुशियों भरा
लुभावना जीवन राग...
"परिश्रम और कर्म से सींच ....बेहतरीन
जवाब देंहटाएंसच में स्वप्न पूरे करने के लिए परिश्रम तो करना ही होगा..बहुत सुन्दर प्रस्तुति ..
जवाब देंहटाएंसौ फी सदी सच कहा है ... स्वप्न देखने से ही कुछ नहीं होता ... उनको पोसना होता है ... पालन करना पढता है उनका मेहनत से ... पसीना बहाना होता है उन्हें साकार करने को ... सुन्दर अभिव्यक्ति ...
जवाब देंहटाएं.बहुत सुन्दर प्रस्तुति ..
जवाब देंहटाएंवाह, वाह, बहुत खुूब। बेहद सुंदर रचना।
जवाब देंहटाएंवाह, वाह, बहुत खुूब। बेहद सुंदर रचना।
जवाब देंहटाएं.उर की अनंत गहराइयों में
जवाब देंहटाएंbht hi sashakt bhav
सचमुच..स्वप्नों को साकार तो स्वयं ही करना होगा..
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंसच कहा है बहुत सुन्दर
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