हिराने अंगना
बिसरे चूल्हा
कहाँ डरे अब
बरा पे झूला
भूले चकिया
सूपा, फुकनी
नहीं दिखे ढिग
छुई की चिकनी
ओझल भये
गेरू के फूल
गाँव गलिन की
गुईयाँ संगे
सजा लओ
सबने अपनों
छोटो सो घरगूला.....
बिसरे चूल्हा
कहाँ डरे अब
बरा पे झूला
भूले चकिया
सूपा, फुकनी
नहीं दिखे ढिग
छुई की चिकनी
ओझल भये
गेरू के फूल
गाँव गलिन की
गुईयाँ संगे
सजा लओ
सबने अपनों
छोटो सो घरगूला.....
वाह कितनी मधुर स्मृतियों क याद किया है ... अब कहाँ यह सब ....
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर .
जवाब देंहटाएंमेरे द्वारा क्लिक कुछ फोटोज् देखिये
सुन्दर सशक्त अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंघरघूला स्थाई नहीं होता। जब मन आया उजाड़ दिया जब मन आया बना लिया। घर में स्थायित्व का बोध होता है। अर्थात खेल-खेल में बनाया हुआ घर। सुंदर भाव।
जवाब देंहटाएंवाह , मंगलकामनाएं आपको !
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