शब्दों की भीनी मिठास
भावों की महक को
जब शृंगार के जल में
व्याकरणी दूध खौलाकर
डबकाते होगें कुछ देर
तो कविता सी
बनती होगी चाय उनकी
ताज़गी से भरपूर
दार्जलिंगी गमक लिए
महकते शब्दों को
जायकेदार ख़ुश्बू संग
खूब खौलाते हैं
बड़ी शिद्दत से वो
जैसे चाय नही पक रही
कोई कविता उबल रही हो
उबलेगी, खौलेगी, छनेगी
फ़िर प्रस्तुत की जाएगी
प्यालियों रकाबियों में \
किताबों की तरह
व्यवस्था परिवर्तन के लिए
क्रांति का उद्घोष करती...
रोचक ....
जवाब देंहटाएंअलग ढंग से अभिव्यक्त सुन्दर भाव
kya baat hai .... bht badhiya
जवाब देंहटाएंमंथनोपरांत उतपन्न विचार कसौटी की कड़ाही में पक कर पुष्ट होते हैं। सुंदर कविता।
जवाब देंहटाएंकविता सी इस चाय को पीकर उमग गया है मन...उत्साह से..आभार !
जवाब देंहटाएंकई बड़ी बड़ी क्रांतियाँ चाय के इर्द-गिर्द ही उबाल में आई होंगी ...
जवाब देंहटाएंअच्छी रचना है ...
इसकी महक साँसों में उतर रही है .
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबढ़िया !
जवाब देंहटाएंकोई कविता उबल रही हो
जवाब देंहटाएंउबलेगी, खौलेगी, छनेगी
फ़िर प्रस्तुत की जाएगी
प्यालियों रकाबियों में \
किताबों की तरह
बढ़िया एहसासात को संजोये हैं ये चंद पंक्तियाँ :)