कोई आदि - अंत
नही होता जीवन का
हर हाल में
ज़ारी रहता है सफ़र
रुक-रुक कर शनै: शनै:
अब इच्छा है लौटने की
हो सकता है कुछ
बदलाव हो मुझमे
तो हैरान न होना
स्वीकारा है मैंने
प्रकृति का नियम
तुम भी मुझे
ऐसे ही स्वीकारना
उस पुष्प की तरह
भले बदला हो
जिसका स्वरुप
खुशबू वही होगी
बस तुम अपनी
दृष्टी में रखना
वही विश्वास
गौधूली वेला में
जो अब तक
मेरी पहचान रहें हैं...
नही होता जीवन का
हर हाल में
ज़ारी रहता है सफ़र
रुक-रुक कर शनै: शनै:
अब इच्छा है लौटने की
हो सकता है कुछ
बदलाव हो मुझमे
तो हैरान न होना
स्वीकारा है मैंने
प्रकृति का नियम
तुम भी मुझे
ऐसे ही स्वीकारना
उस पुष्प की तरह
भले बदला हो
जिसका स्वरुप
खुशबू वही होगी
बस तुम अपनी
दृष्टी में रखना
वही विश्वास
गौधूली वेला में
जो अब तक
मेरी पहचान रहें हैं...
हर रूप में स्वीकार्यता बनी रहे ..... गहरी बात
जवाब देंहटाएंब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन डबल ट्रबल - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
जवाब देंहटाएंबस तुम अपनी
जवाब देंहटाएंदृष्टी में रखना
वही विश्वास
गौधूली वेला में
जो अब तक
मेरी पहचान रहें हैं...
बेहतरीन रचना …गीता में उद्धृत "आत्मा न मरती है न जिंदा होती है, केवल अपना स्वरूप बदलती है का सुंदर चित्रण …गोधूली बेला में चारागाह से लौटते हुए गायों के माध्यम से …
जवाब देंहटाएंइस गौधुली की वेला में सभी को जाना है ... फिर से नए रूप में आने को ...
जवाब देंहटाएंगहरा अर्थ समेटे भाव है रचना के ...
समय के साथ सब बदले , मगर मूल चेतना शुद्ध भाव से उसे ही ग्रहण करे जो सत्य चित्त है !
जवाब देंहटाएंभावपूर्ण अभिव्यक्ति !
बेहतरीन रचना …...
जवाब देंहटाएंवाह !!
जवाब देंहटाएंगोधुली वेला बड़े अरसे बाद पढ़ा ! आभार और मंगलकामनाएं !
सुंदर गोधुली बेला :)
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर कोमल भाव..
जवाब देंहटाएंकोमल भाव से कोमल कविता बनती है
जवाब देंहटाएंह्रदय के तार जब तक जुड़े होते हैं, कहाँ किसी परिवर्तन के वश में होता है कोई भ्रम पैदा कर दे. सुन्दर भाव.
जवाब देंहटाएंसुंदर रचना
जवाब देंहटाएंअनुपम भ्ााव संयोजन .... बहुत ही अच्छी रचना
जवाब देंहटाएंबहुत खूब....
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