घंटाघर की घड़ियों को
बड़े गौर से देखते हुए
एक बुज़ुर्ग से
मैंने जानना चाहा
उनकी उत्सुकता का कारण
तो वे मुस्कुराते हुए बोले
छियासठ बरस हो गए
आशा - विश्वास जल से सींचते
मेरी आशा के मुरझाते बिरवे में
एक कोंपल फूटी है
हो न हो .......
मेरे जीवन के अंत तक बदल जाए
उम्मीद पर तो दुनिया कायम है
और चल दिए मुस्कराहट बिखेरते
गुनगुनाते हुए वही पुरानी सी कविता
"घंटाघर में चार घड़ी
चारों में जंजीर पड़ी
जब-जब घंटा बजता है
खड़ा मुसाफिर हँसता है"
वो सुबह कभी तो आएगी ……।
बड़े गौर से देखते हुए
एक बुज़ुर्ग से
मैंने जानना चाहा
उनकी उत्सुकता का कारण
तो वे मुस्कुराते हुए बोले
छियासठ बरस हो गए
आशा - विश्वास जल से सींचते
मेरी आशा के मुरझाते बिरवे में
एक कोंपल फूटी है
हो न हो .......
मेरे जीवन के अंत तक बदल जाए
उम्मीद पर तो दुनिया कायम है
और चल दिए मुस्कराहट बिखेरते
गुनगुनाते हुए वही पुरानी सी कविता
"घंटाघर में चार घड़ी
चारों में जंजीर पड़ी
जब-जब घंटा बजता है
खड़ा मुसाफिर हँसता है"
वो सुबह कभी तो आएगी ……।
बहुत सुन्दर .... कितनी और कैसी आशाएं ...?
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना रविवार 13 अप्रेल 2014 को लिंक की जाएगी...............
जवाब देंहटाएंhttp://nayi-purani-halchal.blogspot.in
आप भी आइएगा ....धन्यवाद!
वाह...आशा ही ज़िंदगी है...
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर ... आशा है तो जीवन है ..
जवाब देंहटाएंजरूर आएगी वह सुबह..
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंविषम परिस्थितियों में मनुष्य को आधार से डिगना नही चाहिए। यही आशा उसे जीवन पथ पर निरंतर अग्रसर करती है। संदेशपूर्ण कविता के लिए आभार।
जवाब देंहटाएंवो सुबह जल्दी ही आएगी ..…
जवाब देंहटाएंhal pal aasha ka ...jeevan isi ka to naam hai ..
जवाब देंहटाएंसुबह की उम्मीद रात के अंधेरों को झेल जाती है .
जवाब देंहटाएंआशावादी रचना !
आशाएं तो रखनी ही चाहिए ...उम्दा प्रस्तुति ...!
जवाब देंहटाएंRECENT POST - आज चली कुछ ऐसी बातें.
बहुत ही खूब ... आशा और उम्मीद ही तो जीवन अहि ... फिर सुबह जरूर आती है ...
जवाब देंहटाएंसुन्दर बिम्ब के साथ शानदार रचना
जवाब देंहटाएंवो सुबह कभी तो आएगी …आशावादी रचना .
जवाब देंहटाएं"घंटाघर में चार घड़ी
जवाब देंहटाएंचारों में जंजीर पड़ी
जब-जब घंटा बजता है
खड़ा मुसाफिर हँसता है"
वो सुबह कभी तो आएगी ……।
बहुत ही सुन्दर.