ईंट - पत्थरों ने
मुझसे एक प्रश्न किया
यही है तुम्हारी जात ?
यही है तुम्हारा धर्म ?
तुम जैसे जीवों से
हम निर्जीव भले?
बिना भेद-भाव के
पड़े रहते हैं राह में
जीवन भर खुद को घिसते
राह पर बिछकर
सबको सहारा देते
अपने ईमान पर अडिग
आज तक खोजती हूँ
उस प्रश्न का उत्तर
शायद मिल जाए कहीं
मिलेगा एक दिन
इसी आशा से....
hum bhi un pathro se jyaada nirjiv ho gaye hain....
जवाब देंहटाएंसंवेदनहीन समाज में इस प्रश्न का उत्तर मिलना कठिन है,,
जवाब देंहटाएंबहुत ही भावपूर्ण रचना...
उत्तर नहीं मिलते ...फिर भी आशा की किरण जलती ही रहती है ...जीवन की आखिरी साँस तक
जवाब देंहटाएंइस जगत के सारे जनमानस ......."बिना भेद-भाव के" "अपने ईमान पर अडिग" " पड़े रहते हैं राह में, जीवन भर खुद को घिसते राह पर बिछकर, सबको सहारा देते" .......इन पंक्तियों पर ध्यान दे अपने स्वयम को परिवर्तित कर लें .....फिर आशा की किरण नहीं, जीवन-ज्योति की सुन्दर लव समूचे जगत को प्रकाशित करेगी......
जवाब देंहटाएंमन में उमड़ते भावों का निर्जीव पदार्थ के माध्यम से सजीव चित्रण ...
जवाब देंहटाएंबेहतरीन संग्रहणीय
जवाब देंहटाएंबहुत उम्दा भाव पूर्ण प्रस्तुति ...!
जवाब देंहटाएंRECENT POST -: हमने कितना प्यार किया था.
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जवाब देंहटाएंसुन्दर भाव..
सस्नेह
अनु
बेहतरीन भाव लिए सार्थक रचना
जवाब देंहटाएंसुंदर और मनोहारी प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर प्रस्तुती आदरेया।
जवाब देंहटाएंएक बात कहना था आपकी प्रस्तुती का लिंक तो अन्य चर्चाकर अपने मंच पर लगा ही रहें है क्या कभी आपने इसका कभी प्रतिकार किया, यदि नही तो फिर आपकी आदेश की पट्टी क्यों चल रही है । उत्कृष्ट रचना को ही चर्चाकर अपने मंच पर लगते है ताकि अन्य लोग भी अधिक से अधिक पढ़ सके आपकी उत्कृष्ट रचना। धृष्टता के लिए क्षमा पार्थी हूँ क्योकि मैं भी चर्चाकर हूँ। rajendra651@gmail.com
तुम जैसे जीवों से
जवाब देंहटाएंहम निर्जीव भले?
बिना भेद-भाव के
पड़े रहते हैं राह में
जीवन भर खुद को घिसते
राह पर बिछकर
सबको सहारा देते
सशक्त भाव लिये बेहतरीन अभिव्यक्ति
वाह .... मर्म को छूते भाव
जवाब देंहटाएंपता नहीं ओर कहां तक गिरेगा इन्सान ... अर्थपूर्ण रचना ...
जवाब देंहटाएंभाव पूर्ण प्रस्तुति ...!
जवाब देंहटाएंसच कहा इन्सान तो सबसे गया बीता होता जा रहा है |
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