सोमवार, 1 अप्रैल 2013

पराई प्यास....

अधपके बालों के बीच 
दर्द भरा निस्तेज चेहरा
निढाल, बेहाल 
जैसे गिन रहा हो अपनी ही
सांसों का आना-जाना
ज्वर की तपन से तप्त 
रग-रग में दौड़ती थकान 
दिनभर की भाग-दौड़ से 
चूर-चूर मज़बूर
व्याकुल शरीर 
कब से जुटा रहा है 
थोड़ी सी हिम्मत
उठे जाकर ला सके
एक गिलास पानी
सूखते गले को
मिले थोड़ी राहत
और निगल सके
बुखार की दवा
कांपती उंगलियाँ
लड़खड़ाते पाँव
साथ नहीं देते
उसी वक़्त अचानक
गूंजी एक रौबदार आवाज़
रामू  एक गिलास पानी ला
अगले ही पल चल पड़ी
वह चलती फिरती लाश
ओढ़कर गरीबी का कफ़न
बुझाने पराई प्यास....

18 टिप्‍पणियां:

  1. .भावात्मक अभिव्यक्ति ह्रदय को छू गयी आभार जया प्रदा भारतीय राजनीति में वीरांगना .महिला ब्लोगर्स के लिए एक नयी सौगात आज ही जुड़ें WOMAN ABOUT MANजाने संविधान में कैसे है संपत्ति का अधिकार-1

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  2. गरीबी के जीवन की यही व्यथा कथा ....मर्मस्पर्शी

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  3. बहुत ही उत्कृष्ट और मार्मिक व्यथा की प्रस्तुति.

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  4. अभिशप्त गरीब .. जिनका मजाक उड़ाती गरीबी..

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  5. बेहद मार्मिक....
    मजबूरी/गरीबी इंसान को तोड़ देती है...

    सस्नेह
    अनु

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  6. बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
    --
    इंजीनियर प्रदीप कुमार साहनी अभी कुछ दिनों के लिए व्यस्त है। इसलिए आज मेरी पसंद के लिंकों में आपका लिंक भी चर्चा मंच पर सम्मिलित किया जा रहा है और आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल बुधवार (03-04-2013) के “शून्य में संसार है” (चर्चा मंच-1203) पर भी होगी!
    सूचनार्थ...सादर..!

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  7. गरीबी की व्यथा को दर्शाती
    बहुत ही मर्मस्पर्शी रचना...

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  8. यह रचना अत्यंत मार्मिक लगी । गरीब परिस्थिति का बखूबी ढंग से उल्लेख किया गया । अतिसुन्दर!!

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  9. उफ़...बेहद मार्मिक.....शानदार प्रस्तुति।

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  10. उफ़...बेहद मार्मिक.....शानदार प्रस्तुति।

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  11. अन्यों को जो पानी पिला सकता है...वह खुद भी प्यासा नहीं रहेगा..

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  12. बहुत सुंदर रचना ..
    गरीबी अभिशाप ही तो है ..
    अपने लिए न जीकर औरों के लिए जीयो..

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