( 'पूर्णस्य पूर्णमादाय ' कहने से तात्पर्य यह है की यदि तुम स्वयं इस सत्य की अनुभूति कर सको कि वही ' पूर्ण ' तुम्हारे साथ साथ इस विश्व ब्रह्माण्ड के कण कण में भी प्रविष्ट है तो फिर उस ' पूर्ण ' के बाहर शेष बचा क्या ? इसी को कहा गया - ' पूर्णमेवावशिष्यते '.... ! 'करवा चौथ' के मंगल पावनपर्व पर हार्दिक शुभकामनायें ....)
खूब तुलना हो रही थी
अपने चाँद से ऊपर वाले चाँद की,
सबकी बातें सुनकर
खुद को सँवारने की खातिर
ऊपर वाला चाँद कल रात से
अभी तक नहा रहा है
पूरा निखर के आएगा रात को
लेकिन उसे क्या पता कि
कितना भी क्यों न संवर ले
वह चौथ का चाँद
मेरे पूनम के चाँद के आगे
फिर भी फीका नज़र आएगा.........
बहुत सुंदर ...
जवाब देंहटाएंबहुत अद्भुत अहसास...सुन्दर प्रस्तुति .पोस्ट दिल को छू गयी.......कितने खुबसूरत जज्बात डाल दिए हैं आपने..........बहुत खूब,
जवाब देंहटाएंवाह क्या बात है ..
जवाब देंहटाएंकितना भी क्यों न संवर ले
जवाब देंहटाएंवह चौथ का चाँद
मेरे पूनम के चाँद के आगे
फिर भी फीका नज़र आएगा......खुबसूरत जज्बात,,,,
rcent post link: समय की पुकार है,
बहुत सुन्दर भाव लिए रचना..
जवाब देंहटाएंकितना भी क्यों न संवर ले
वह चौथ का चाँद
मेरे पूनम के चाँद के आगे
फिर भी फीका नज़र आएगा.....
सुन्दर....
:-)
बहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंbhaut hi khubsurat.....
जवाब देंहटाएंwaah badhiya ...
जवाब देंहटाएंबहुत प्यारी बात....
जवाब देंहटाएंसदा चमकता रहे आपका चाँद और नूर आपके चेहरे पर दिखे....
सस्नेह
अनु
'करवा चौथ' के मंगल पावनपर्व पर हार्दिक शुभकामनायें .
जवाब देंहटाएंबहुत प्यारी बात कह दी आपने गागर में सागर भर दी
बहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंअच्छी और सच्ची बात
बहुत बहुत शुभकामनाएं
चाँद की सौगात सबके घर ...प्यार की पूर्णता
जवाब देंहटाएं'करवा चौथ' पर हार्दिक शुभकामनायें .
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना।वाह क्या बात है।
सच में किसी की तुलना दूसरे से नहीं की जा सकती |बढ़िया रचना |
जवाब देंहटाएंआशा
"कितना भी क्यों न संवर ले
जवाब देंहटाएंवह चौथ का चाँद
मेरे पूनम के चाँद के आगे
फिर भी फीका नज़र आएगा"
शुक्ल पक्ष!
चाँद दिखाई देने लगता है
"संध्या" होते ही ....
मगर खासियत है
इस "संध्या" में
कृष्ण पक्ष की चतुर्थी
पति-प्रेम का प्रतीक पर्व
"करवा चौथ" के चाँद में
पूनम के चाँद से भी
सुंदर "चाँद" का दिखाना
इस जगत में गृहस्थ की गाड़ी
के पहियों का "प्रेम" की धुरी
में घूमते रहना निहायत जरूरी है ..
बीलेटेड बधाई सहित ...सादर।
आने वाले पर्वों की अग्रिम बधाई तो कई बार देते लेते रहते हैं।
वैसे आपकी रचना हमारे द्वारा बाद में पढ़ी गई ....विलम्ब के
लिए खेद है .......
काश हमारा मन व हमारे विचार भी उतने धवल व पवित्र होते जितना चाँद का धवल रूप है।बाहर के उजाले में अंदर का उजाला कहीं खोता जाता है। अच्छी कविता।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना...
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर।
जवाब देंहटाएंपूर्णस्य पूर्णमादाय..को हमेशा याद रखने की आवश्यकता है।
वाह बेहतरीन !!!!
जवाब देंहटाएंबहुत प्यारी बात संध्या जी आपने