दीवाली
सभी के लिए आती है बिना किसी भेद-भाव के, रोजी-मजूरी करने वाला हो या
अरबपति-खरबपति सभी लक्ष्मी जी को ध्याते हैं। इस कमरतोड़ महंगाई के दौर
में सब अपनी-अपनी क्षमता के हिसाब से दीवाली मनाते हैं, फर्क इतना है कि
किसी के घर में हजार दीयों की रौशनी होती है तो कोई मन का एक दीप ही जलाता
है. किसी की दीवाली मनती है तो किसी का दिवाला निकलता है। खैर जैसे भी हो
इस महंगाई के दौर में मन का दीप जलाएं, अंतर्मन जग-मग हो ऐसी मने दीवाली
.... आप सभी को दीपावली की ढेरो शुभकामनायें.....

ज़िंदगी सब कुछ सिखा देती है इंसान को
कितना सही कहा है न कहने वाले ने
एक नन्हा सा आठ साल का बच्चा
दिन भर जिसके हाथ में होते थे
बिस्किट और चिप्स के पैकेट
जब उसके पिता जीवित थे
पिछले कुछ दिनों से देख रही हूँ
उन्ही नन्हे हाथों में ब्रश
पूरे घर को पुताई करके
संवारा सजाया उसने
लेकिन आज जो देखा
मन और आँखे दोनों भर गए
उसकी बालकनी पर दिखाई दी
छोटी सी रंग-बिरंगी लड़ी
पहली नज़र में आभास हुआ
शायद रंगीन बल्ब की झालर है
मन खुश हुआ था देखकर
सोचा चलो अच्छा है
इसबार सबसे पहले रौशन हो गया
इस नन्हे का छोटा सा घर
कुछ काम से छत पर गई
ध्यान गया उस रंगीन लड़ी पर
वह रंगीन बल्ब की झालर नहीं
रंगीन धागों की छोटी सी तोरण थी
शायद गणेशोत्सव से संभालकर रखी थी उसने
कितनी बड़ी सोच है ना नन्ही सी जान की
ख्वाब है रंगीन भी हैं रौशनी नहीं तो क्या
आज नहीं तो कल होगा सबेरा
बचकर जायेगा कहाँ....