सोमवार, 10 सितंबर 2012

कोई आया भी तो......संध्या शर्मा

जब बीत गया सावन  
घिरकर क्या करेंगे घन
सूखे मन के उपवन में
कोई आया भी तो क्या आया

ख़ुशी बसंती बयार हो
कोयल गीत गाती हो
बसंती राग पतझर ने
कोई गाया भी तो क्या गाया

लगी हो आग सावन में
तन-मन झुलसा हो
जल रहा गीत जब हो
कोई मल्हार गाया तो क्या गाया
                                                                                     
खुली रखीं प्रतीक्षा में
जाने कब से ये आँखें
थककर मूँद ली पलकें
कोई आया भी तो क्या आया

तड़पकर बूँद को जिसकी
प्यासा मर गया चातक
सजल घन मौत पर उसकी
कोई रोया भी तो क्या रोया

जीवन भर उजाले को
भटकती रही व्याकुल
जलाकर दीप समाधि पर
कोई लाया भी तो क्या लाया

25 टिप्‍पणियां:

  1. असाढ का चूका किसान और डाल से चूका बंदर………

    अच्छे भाव हैं कविता के, आभार

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  2. सुन्दर कविता लिखी दीदी
    पर अकेले पढ़ने मे मजा नही आ रहा है
    इसे मैं अपने साथ ले जा रही हूँ
    नई-पुरानी हलचल में
    मिल-बैठ कर पढ़ेंगे सब
    आप भी आइये न
    इसी बुधवार को
    मतलब परसों
    सादर
    यशोदा

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  3. खुली रखीं प्रतीक्षा में
    जाने कब से ये आँखें
    थककर मूँद ली पलकें
    कोई आया भी तो क्या आया


    बहुत सुंदर
    क्या कहने

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  4. @yashoda agrawal
    हम जरुर आयेंगे
    सब साथ मिल-बैठ कर पढ़ेंगे

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  5. का वर्षा जब कृषि सुखानी...! बड़े मार्मिक भाव लिए है कविता।

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  6. संध्या जी बहुत अच्छी कविता है ।
    जीवन भर उजाले को
    भटकती रही व्याकुल
    जलाकर दीप समाधि पर
    कोई लाया भी तो क्या लाया
    ..... बहुत ही सही ... उत्‍कृष्‍ट लेखन के लिए आभार ।

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  7. बहुत सुन्दर ...
    मन को एकदम से भा गयी कविता....
    और हौले से गा गयी कविता...

    सस्नेह
    अनु

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  8. पछताये का होत है,जब चिड़िया चुग गई खेत,,,,
    बहुत सुन्दर भाव अभिव्यक्ति,,,,,,संध्या जी,,,

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  9. बहुत सुन्दर शब्दों से सजी भावपूर्ण रचना |

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  10. ram ram bhai
    सोमवार, 10 सितम्बर 2012
    आलमी हो गई है रहीमा शेख की तपेदिक व्यथा -कथा (आखिरी से पहली किस्त )

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  11. बहुत सराहनीय प्रस्तुति.
    बहुत सुंदर बात कही है इन पंक्तियों में. दिल को छू गयी. आभार

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  12. खुली रखीं प्रतीक्षा में
    जाने कब से ये आँखें
    थककर मूँद ली पलकें
    कोई आया भी तो क्या आया... अब ये क्या अपनापनी जब जा रही बारात है

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  13. सही है समय पर दवा न मिले तो रोग बेकाबू हो जाता है...पर देर आयद दुरस्त आयद यह भी तो कहते हैं...

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  14. जीवन भर उजाले को
    भटकती रही व्याकुल
    जलाकर दीप समाधि पर
    कोई लाया भी तो क्या लाया...

    ...... सराहनीय प्रस्तुति,आभार

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  15. जीवन भर उजाले को
    भटकती रही व्याकुल
    जलाकर दीप समाधि पर
    कोई लाया भी तो क्या लाया

    ये बेचैनी क्यों , कैसी अकुलाहट . छटेगा बादल उगेगा सूरज ,

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  16. सूखे मन के उपवन में
    कोई आया भी तो क्या आया

    खूबसूरती से उकेरे हैं भाव ...

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  17. खुली रखीं प्रतीक्षा में
    जाने कब से ये आँखें
    थककर मूँद ली पलकें
    कोई आया भी तो क्या आया ...

    बहुत खूब ... सच कहा है .. जब जरूरत हो तब कोई पास न आए तो क्या आए ... भावों को सुन्दर शब्दों में उकेरा है ...

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  18. सब कुछ अपने समय पर हो तो अच्छा, पर बारिश तो देर से भी आये तो भली ही लगती है ।

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  19. हर पल की अपनी जरुरत होती है , बीतने के बाद कोई मोल नहीं रह जाता है ..अति सुन्दर रचना..

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