जब बीत गया सावन
घिरकर क्या करेंगे घन
सूखे मन के उपवन में
कोई आया भी तो क्या आया
ख़ुशी बसंती बयार हो
कोयल गीत गाती हो
बसंती राग पतझर ने
कोई गाया भी तो क्या गाया
लगी हो आग सावन में
तन-मन झुलसा हो
जल रहा गीत जब हो
कोई मल्हार गाया तो क्या गाया
खुली रखीं प्रतीक्षा में
जाने कब से ये आँखें
थककर मूँद ली पलकें
कोई आया भी तो क्या आया
तड़पकर बूँद को जिसकी
प्यासा मर गया चातक
सजल घन मौत पर उसकी
कोई रोया भी तो क्या रोया
जीवन भर उजाले को
भटकती रही व्याकुल
जलाकर दीप समाधि पर
कोई लाया भी तो क्या लाया
घिरकर क्या करेंगे घन
सूखे मन के उपवन में
कोई आया भी तो क्या आया
ख़ुशी बसंती बयार हो
कोयल गीत गाती हो
बसंती राग पतझर ने
कोई गाया भी तो क्या गाया
लगी हो आग सावन में
तन-मन झुलसा हो
जल रहा गीत जब हो
कोई मल्हार गाया तो क्या गाया
खुली रखीं प्रतीक्षा में
जाने कब से ये आँखें
थककर मूँद ली पलकें
कोई आया भी तो क्या आया
तड़पकर बूँद को जिसकी
प्यासा मर गया चातक
सजल घन मौत पर उसकी
कोई रोया भी तो क्या रोया
जीवन भर उजाले को
भटकती रही व्याकुल
जलाकर दीप समाधि पर
कोई लाया भी तो क्या लाया
असाढ का चूका किसान और डाल से चूका बंदर………
जवाब देंहटाएंअच्छे भाव हैं कविता के, आभार
सुन्दर कविता लिखी दीदी
जवाब देंहटाएंपर अकेले पढ़ने मे मजा नही आ रहा है
इसे मैं अपने साथ ले जा रही हूँ
नई-पुरानी हलचल में
मिल-बैठ कर पढ़ेंगे सब
आप भी आइये न
इसी बुधवार को
मतलब परसों
सादर
यशोदा
खुली रखीं प्रतीक्षा में
जवाब देंहटाएंजाने कब से ये आँखें
थककर मूँद ली पलकें
कोई आया भी तो क्या आया
बहुत सुंदर
क्या कहने
@yashoda agrawal
जवाब देंहटाएंहम जरुर आयेंगे
सब साथ मिल-बैठ कर पढ़ेंगे
का वर्षा जब कृषि सुखानी...! बड़े मार्मिक भाव लिए है कविता।
जवाब देंहटाएंसंध्या जी बहुत अच्छी कविता है ।
जवाब देंहटाएंजीवन भर उजाले को
भटकती रही व्याकुल
जलाकर दीप समाधि पर
कोई लाया भी तो क्या लाया
..... बहुत ही सही ... उत्कृष्ट लेखन के लिए आभार ।
बहुत सुन्दर ...
जवाब देंहटाएंमन को एकदम से भा गयी कविता....
और हौले से गा गयी कविता...
सस्नेह
अनु
पछताये का होत है,जब चिड़िया चुग गई खेत,,,,
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर भाव अभिव्यक्ति,,,,,,संध्या जी,,,
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बहुत सुन्दर शब्दों से सजी भावपूर्ण रचना |
जवाब देंहटाएंबहुत-बहुत सुन्दर रचना...
जवाब देंहटाएं:-)
हृदयस्पर्शी भाव ......
जवाब देंहटाएंram ram bhai
जवाब देंहटाएंसोमवार, 10 सितम्बर 2012
आलमी हो गई है रहीमा शेख की तपेदिक व्यथा -कथा (आखिरी से पहली किस्त )
बहुत सराहनीय प्रस्तुति.
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर बात कही है इन पंक्तियों में. दिल को छू गयी. आभार
खुली रखीं प्रतीक्षा में
जाने कब से ये आँखें
थककर मूँद ली पलकें
कोई आया भी तो क्या आया... अब ये क्या अपनापनी जब जा रही बारात है
सही है समय पर दवा न मिले तो रोग बेकाबू हो जाता है...पर देर आयद दुरस्त आयद यह भी तो कहते हैं...
जवाब देंहटाएंजीवन भर उजाले को
जवाब देंहटाएंभटकती रही व्याकुल
जलाकर दीप समाधि पर
कोई लाया भी तो क्या लाया...
...... सराहनीय प्रस्तुति,आभार
जीवन भर उजाले को
जवाब देंहटाएंभटकती रही व्याकुल
जलाकर दीप समाधि पर
कोई लाया भी तो क्या लाया
ये बेचैनी क्यों , कैसी अकुलाहट . छटेगा बादल उगेगा सूरज ,
सूखे मन के उपवन में
जवाब देंहटाएंकोई आया भी तो क्या आया
खूबसूरती से उकेरे हैं भाव ...
खुली रखीं प्रतीक्षा में
जवाब देंहटाएंजाने कब से ये आँखें
थककर मूँद ली पलकें
कोई आया भी तो क्या आया ...
बहुत खूब ... सच कहा है .. जब जरूरत हो तब कोई पास न आए तो क्या आए ... भावों को सुन्दर शब्दों में उकेरा है ...
सुन्दर रचना।
जवाब देंहटाएंवाह...सुंदर भाव
जवाब देंहटाएंसब कुछ अपने समय पर हो तो अच्छा, पर बारिश तो देर से भी आये तो भली ही लगती है ।
जवाब देंहटाएंहर पल की अपनी जरुरत होती है , बीतने के बाद कोई मोल नहीं रह जाता है ..अति सुन्दर रचना..
जवाब देंहटाएंbehad khoobsurat bhav...
जवाब देंहटाएंsahi bat ka warsha jb krishi sukhane ....
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