संग तेरा पाने क्या क्या करना होगा मितवा,
सूरज सा उगना होगा या चाँद सा ढलना होगा.
सूरज सा उगना होगा या चाँद सा ढलना होगा.
खूब चले मखमली राहों पर हम तो मितवा,
काटों भरी राह में भी हँसकर चलना होगा.
काटों भरी राह में भी हँसकर चलना होगा.
तारीकी राहों की खूब बढ चुकी है मितवा,
चिंगारी को एक शोला बनके जलना होगा.
चिंगारी को एक शोला बनके जलना होगा.
तेरी आहट पे मचले हैं अरमान मेरे मितवा,
लगता है सर्द रातों को करवटें बदलना होगा.
लगता है सर्द रातों को करवटें बदलना होगा.
जिल्ले इलाही ने लगा रखा है पहरा मितवा,
आएगा दिन के उन्हे निजाम बदलना होगा.
आएगा दिन के उन्हे निजाम बदलना होगा.
तरसते है परवाज को कैद में परिंदे मितवा,
रहमते ख़ुदा हो गर तो उन्हे भी उड़ना होगा.
रहमते ख़ुदा हो गर तो उन्हे भी उड़ना होगा.
सांझ हुई चाँद-तारे निकल चुके हैं मितवा,
परींदे जा चुके घर अब हमें भी चलना होगा....
परींदे जा चुके घर अब हमें भी चलना होगा....
बहुत-बहुत सुन्दर रचना...
जवाब देंहटाएंजब बाहर उड़ना ही है तो
जिल्लेइलाही का क्या डर..
:-) :-)
वाह गज़ब ढा दिया आपने, क्या बात है, अति सुन्दर
जवाब देंहटाएं(अरुन शर्मा = www.arunsblog.in)
वाह बहुत खुबसूरत ।
जवाब देंहटाएंखूब चले मखमली राहों पर हम तो मितवा,
जवाब देंहटाएंकाटों भरी राह में भी हँसकर चलना होगा...
राहें जैसी भी हों ... मिलन की चाह ... साथ चलने की इच्छा हो तो कंटें भी फूल बन जाते हैं ....
खुबसूरत काव्य, आशाओं से भरा हुआ।
जवाब देंहटाएंआभार
बहुत अच्छी रचना है
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर
परींदे जा चुके घर अब हमें भी चलना होगा....
जवाब देंहटाएंजाना तो है ही , कुछ देर रुको
कोई पपीहा अभी यहीं है
कुछ कहने को आतुर
सुनने को आतुर .... मोह से कैसे निकलूं
सांझ हुई चाँद-तारे निकल चुके हैं मितवा,
जवाब देंहटाएंपरींदे जा चुके घर अब हमें भी चलना होगा....
..चलना ही जिंदगी है ...बहुत बढ़िया प्रस्तुति
खुबसूरत
जवाब देंहटाएंबहुत खूब किया है मितवा से सीधा संवाद चाँद तारों की जानिब .
जवाब देंहटाएंसोमवार, 3 सितम्बर 2012
स्त्री -पुरुष दोनों के लिए ही ज़रूरी है हाइपरटेंशन को जानना
स्त्री -पुरुष दोनों के लिए ही ज़रूरी है हाइपरटेंशन को जानना
What both women and men need to know about hypertension
सुंदर रचना के लिए आभार ...
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना ...
जवाब देंहटाएंबेहद उम्दा रचना.
जवाब देंहटाएंसादर.
बहुत सुन्दर ...
जवाब देंहटाएंबहुत बेहतरीन रचना,,,,,,
जवाब देंहटाएंबहुत खूब....|
जवाब देंहटाएंतरसते है परवाज को कैद में परिंदे मितवा,
जवाब देंहटाएंरहमते ख़ुदा हो गर तो उन्हे भी उड़ना होगा.
उत्साह और अरमानों का क्या है .....बेहतर शब्दों के माध्यम से अभिव्यक्त हुए हैं ....और यहाँ बेहतर बन पड़े हैं ...!
मितवा के होंठों पर ऐसे गीत गुनगुनाये तो क्या बात है.. बहुत अच्छी लगी..बधाई..
जवाब देंहटाएंखुबसूरत शब्दों में ढले चंद खूबसूरत से ख्याल...
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर अहसास...सुन्दर प्रस्तुति...
जवाब देंहटाएंचिंगारी को एक शोला बनके जलना होगा.
जवाब देंहटाएंतेरी आहट पे मचले हैं अरमान मेरे मितवा
.........अच्छी और भाव भरी रचना।
शुभकामनाएं आपको !!!!
Lovely creation..
जवाब देंहटाएंसांझ हुई चाँद-तारे निकल चुके हैं मितवा,
जवाब देंहटाएंपरींदे जा चुके घर अब हमें भी चलना होगा....
बहुत सुन्दर अहसास...
बहुत ही बढ़िया
जवाब देंहटाएंसादर
utkrist rachna behtareen bhee
जवाब देंहटाएंutkrist rachna behtareen bhee
जवाब देंहटाएं.बहुत सुन्दर संध्याजी
जवाब देंहटाएंलगता है सर्द रातों को करवटें बदलना होगा.
जवाब देंहटाएंजिल्ले इलाही ने लगा रखा है पहरा मितवा,
wah gahan abhivykti .....sundar rachana ..abhar ke sath badhai bhi
Manmohak rachna.
जवाब देंहटाएंतरसते है परवाज को कैद में परिंदे मितवा,
जवाब देंहटाएंरहमते ख़ुदा हो गर तो उन्हे भी उड़ना होगा.
सांझ हुई चाँद-तारे निकल चुके हैं मितवा,
परींदे जा चुके घर अब हमें भी चलना होगा....
वाह बेहद संजीदगी से लिखी हुई लेखनी ....और ये ही तो जिंदगी का सच भी तो है .......
कि आ अब लौट चले ..एक घरोंदा अपना भी हैं
बसाना हैं जिसे अपनी उम्मीदों से
एक नया सा अपना भी आसमां ||
आपकी रचना जितनी बार पढिए, लगता है पहली बार पढ रहा हूं।
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