अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता हमें क़ानूनी रूप से मिली और हम इसी स्वतंत्रता के तहत ब्लॉग लेखन कर अपने विचारों को आम पाठकों तक पहुंचाते हैं। पाठकों एवं ब्लॉगर्स के विचार हमें ब्लॉग पर टिप्पणियों के माध्यम से देखने को मिलते हैं। टिप्पणियां सभी ब्लॉगर्स के लिए उर्जा का काम करती हैं एवं विचार विनिमय के पश्चात सार्थक सृजन का मार्ग प्रशस्त करती हैं. टिप्पणियों की माया है कि ये रचनाकार का उत्साह भी बढा सकती हैं और उसे हतोत्साहित भी कर सकती हैं एवं पाठक एवं रचनाकार के मध्य सवांद का माध्यम भी हैं।
मन में कुछ करने कुछ लिखने की दृढ इच्छा और आत्मविश्वास से मैंने इस ब्लॉग जगत में प्रवेश किया और मेरे कवि मन के अपने आप-पास जो भी देखा महसूस किया अपनी भावनाओं को प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से कविताओं के माध्यम से अभिव्यक्त किया. मेरी रचना को पाठकों ने सराहा और टिप्पणियों के रूप में अपना मार्ग दर्शन दिया, इससे मेरा उत्साहवर्धन हुआ और सार्थक टिप्पणियों के लिए ह्रदय से आभारी हूँ.
रचना करना रचनाकार का धर्म है, सभी रचनाकार स्वांत: सुखाय रचना करते हैं। अक्षर-अक्षर जब जुड़ कर शब्द बनतें और शब्द वाक्य में परिवर्तित होते हैं तो रचना का जन्म होता है। रचनाकार के भाव उसके सृजन कर्म से प्रकट होते हैं। सृजन करते समय उसकी जो मन: स्थिति होती है वह उसकी रचना में परिलक्षित होती है। जो भाव मन में उमड़ते वे रचना का रुप धरते हैं। ऐसे ही हमारी रचना को पढ़कर उस पर बिलकुल वैसे ही भाव से अपने विचार व्यक्त करता है जिन भावों पर केन्द्रित होकर रचना की थी, तो हमारी प्रसन्नता का ठिकाना नहीं होता, सृजन सार्थक हो जाता है, हम अपने विचार पाठकों तक पहुँचाने में अपने आप को सफल मानते हैं.
ब्लॉग जगत में मैने देखा है कि कामन टिप्पणियों का बड़ा जोर है। सभी ब्लॉगों पर एक जैसी टिप्पणियाँ ही देखने को मिल जाती है। कभी कभी ऐसी निरर्थक टिप्पणियाँ होती है जिनका रचना से कोई सरोकार नहीं होता। सिर्फ़ हाजरी बजाने वाला ही कार्य दिखाई देता है। परन्तु यदि कोई रचना को केन्द्रित करते टिप्पणी करता है तो रचनाकार का लेखन भी सार्थक हो जाता है और उसे भी अपने कार्य से संतुष्टि मिलती है। कुछ ऐसा ही मुझे अपनी पिछली पोस्ट "रच दूंगी मै संसार निराला" में देखने को मिला. बहुत लोगों ने मेरी इस रचना को अपने-अपने तरीके से सराहा और टिपण्णी की लेकिन एक ऐसी टिप्पणी भी इस पोस्ट पर आई जिसने मुझे एक पोस्ट लिखने के लिए मजबूर कर दिया, और वह टिप्पणी थी ब्लॉगर ललित शर्माजी की.
जिस शक्ति ने रची थी सृष्टि
प्रलयोपरांत रचेगी फ़िर से
शुन्य में स्वर झंकृत होगा
मौन मुखर फ़िर होने वाला
नंदन वन में सोन चिरैया
गीत मधुर गाएगी फ़िर से
रची जाएगी फ़िर मधु से
नव गीतों की मधुरं हाला
ये माटी की रचना माटी से
मातृ शक्ति रच दे फ़िर से
फ़िर चाहे हो बारम्बार प्रलय
मानव नही है डरने वाला
प्रणम्य है वह मातृ शक्ति
जो रचती है फ़िर फ़िर से
उस आंचल की छांह तले
नाचे जग मग मतवाला
केनवास पर जैसे किसी चित्रकार ने स्वर्ण तूलिका से रच डाली सृष्टि । सृष्टि का जनक शायद ऐसे ही कहता होगा। सबको ढांढस बंधाता होगा………हो जाने दो महाप्रलय। मुझे रचना आता है। यह तो नश्वर लोक है प्राणी। बस तू आता जाता है। न जाने कितनी बार रची सृष्टि मैने……… कितनी बात प्रलय आया। बहुत ही भावपूर्ण कविता है। नवीन सृष्टि की रचना करने की आकांक्षा अटूट विश्वास को प्रकट करती है। हे! मातृ शक्ति इस सृष्टि को रचा ही है तूने………… महाप्रलय के पश्चात भी रच सकती है……………मेरा कवि मन अपने को रोक नहीं पाया…… कुछ कहने की इच्छा कर बैठा………आभार"
उनके कवि मन ने हमारी रचना के मूल भाव को एक सुन्दर कविता और अमूल्य शब्दों के माध्यम से इतनी अच्छी तरह व्यक्त किया है। हमारी रचना को उनकी इस अद्भुत टिप्पणी ने सार्थकता प्रदान की है, निश्चित रूप से आप हम सभी ब्लॉगरों के लिए प्रेरणा स्त्रोत हैं, आप एक रचनाकार, लेखक कवि होने के साथ-साथ एक कुशल टिप्पणीकर्ता भी हैं, आशा करते हैं कि आगे भी इसी तरह हमारा प्रोत्साहन करते रहेंगे... आपका ह्रदय से आभार !
अक्षरश: सहमत हूँ आपसे संध्या जी , लेकिन रचना कर्म सर्वथा ह्रदय की पुकार ही है जो हम साझा करते हैं बिना किसी अपेक्षा के . अगर कोई उसके मर्म तक जाता है तो ख़ुशी अवश्य होती है . बस पाठक भाव ग्रहण कर लेते हैं इसी में रचना की सार्थकता है.
जवाब देंहटाएंऐसी निरर्थक टिप्पणियाँ होती है जिनका रचना से कोई सरोकार नहीं होता। सिर्फ़ हाजरी बजाने वाला ही कार्य दिखाई देता है। परन्तु यदि कोई रचना को केन्द्रित करते टिप्पणी करता है तो रचनाकार का लेखन भी सार्थक हो जाता है...!
जवाब देंहटाएंआपकी यह पोस्ट टिप्पणी की महता और आज के परिप्रेक्ष्य में उसकी वास्तविक स्थिति तो उजागर करती है ....ललित शर्मा जी निश्चित रूप से एक कुशल ब्लॉगर - लेखक , जिन्हें खुद को ब्लॉगर कहना ज्यादा पसन्द है , शोधपूर्ण, मौलिक और तथ्यपरक लेखन के साथ - साथ टिप्पणियाँ भी विषय अनुकूल करना उनके ब्लॉगिंग के प्रति जिम्मवारी को दर्शाता है ....!
सुन्दर प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंनवसंवत्सर की शुभकामनायें ।।
आपकी भावनाएं समझ सकती हूँ....
जवाब देंहटाएंह्रदय से की गयी टिप्पणी एक खजाने की तरह है....कभी सात तालों में बंद कर संजोने का मन करता है....या सभी को दिखाने का भी....
बहुत सी शुभकामनाएँ...
यकीनन एक अमूल्य सार्थक टिप्पणी....
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति| नवसंवत्सर २०६९ की हार्दिक शुभकामनाएँ|
जवाब देंहटाएंएक सार्थक टिप्पणी का एक रचनाकार ही महत्त्व समझ सकता है।
जवाब देंहटाएंरचना की रूह से आत्मसात होने के बाद ही सार्थक टिप्पणी दी जा सकती है..नवसंवत्सर की हार्दिक शुभकामनायें!
जवाब देंहटाएंऐसी सार्थक टिप्पणियाँ कम ही मिलती हैं ... अच्छी प्रस्तुति ...
जवाब देंहटाएंनव संवत्सर की शुभकामनायें...
सार्थक और सामयिक पोस्ट, आभार.
जवाब देंहटाएंएक सार्थक टिप्पणी सचमुच उत्साह का संचार करती है...
जवाब देंहटाएंसादर.
निस्संदेह, ब्ला. ललित शर्मा जी एक अच्छे लेखक होने के अलावा एक अच्छे इंसान भी हैं।
जवाब देंहटाएंउनके प्रति अशेष शुभकामनाएं।
aapki bat se puri tarah se sahmat hoom.
जवाब देंहटाएंऊपर की गई सभी की बातों से सहमत हूँ ..
जवाब देंहटाएंसंध्या जी .....ललित भाई जी ..आप दोनों का आभार
अपनी मन की आँखों से जो ग्रहण किया
वो विचार बन गए ,
शब्द बन कर ,कलम में उतर गए
सार्थक हो गए ,वो तुम्हारी मौजूदगी में ,
शब्द तुम्हारे प्रज्वलित प्रतिमा से ,
बस गए हर हृदय में |.............अनु
सहमत हूँ आपसे संध्या जी
जवाब देंहटाएंललित शर्मा जी एक अच्छे लेखक हैं।