माँ का गुणगान तो बहुत कर लिया
कभी पिता के बारे में भी सोचा है क्या?
ममता की छाँव में सुलाती माता
पर कठिनाइयों से उबारते पिता
माँ के पास आंसुओं की गागर
पिता का अर्थ संयम का सागर
जिस भोजन को दुलार से खिलाती माता
उसको भी वही जुटाता खटता पसीना बहाता पिता
देवकी-यशोदा की ममतामयी लगती है गाथा
टोकरी में कन्हैया को लाता वासुदेव नहीं याद आता
राम के लिए वियोग करती कौशल्या माता
पुत्र वियोग में प्राण त्यागते दशरथ से पिता
कष्ट उठाकर पुत्र को देते पॉकेट मनी
खुद पहनते है पैंट - शर्ट पुरानी
बेटी को देते ब्यूटी पार्लर और नयी गाड़ी
खुद बनाते बिना क्रीम के दाढ़ी
बड़े होकर बच्चे हो जाते खुद में मग्न
पिता को दीखता उनका विवाह और शिक्षण
रोजगार के लिए बेटे के कभी घिसते अपना जूता
कहीं बेटी के रिश्ते की खातिर सिर झुकाते पिता
बच्चों के लिए ही जीवन भर होती है जिनकी शुभकामना
उनको भी समझो और प्यार दो बस यही है मेरी भावना...
कभी पिता के बारे में भी सोचा है क्या?
ममता की छाँव में सुलाती माता
पर कठिनाइयों से उबारते पिता
माँ के पास आंसुओं की गागर
पिता का अर्थ संयम का सागर
जिस भोजन को दुलार से खिलाती माता
उसको भी वही जुटाता खटता पसीना बहाता पिता
देवकी-यशोदा की ममतामयी लगती है गाथा
टोकरी में कन्हैया को लाता वासुदेव नहीं याद आता
राम के लिए वियोग करती कौशल्या माता
पुत्र वियोग में प्राण त्यागते दशरथ से पिता
कष्ट उठाकर पुत्र को देते पॉकेट मनी
खुद पहनते है पैंट - शर्ट पुरानी
बेटी को देते ब्यूटी पार्लर और नयी गाड़ी
खुद बनाते बिना क्रीम के दाढ़ी
बड़े होकर बच्चे हो जाते खुद में मग्न
पिता को दीखता उनका विवाह और शिक्षण
रोजगार के लिए बेटे के कभी घिसते अपना जूता
कहीं बेटी के रिश्ते की खातिर सिर झुकाते पिता
बच्चों के लिए ही जीवन भर होती है जिनकी शुभकामना
उनको भी समझो और प्यार दो बस यही है मेरी भावना...
एक नए सन्दर्भ को उद्घाटित करती हुई आपकी यह अर्चना लाजबाब है .....! एक जीवंत घटनाक्रम प्रस्तुत कर दिया अपने इस रचना के माध्यम से ..!
जवाब देंहटाएंचलिए किसी ने समझी हमारी पीड़ा वरना हम तो यूँ हीज़िंदगी जिए जा रहे थे |अच्छी रचना आभार
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर भाव संजोये हैं।
जवाब देंहटाएंक्या बात है संध्या जी.
जवाब देंहटाएंआपकी भावपूर्ण प्रस्तुति से दिल भावविभोर हो गया है.
सच में ईश्वर को भी माता -पिता के रूप में सर्वप्रथम
याद किया जाता है. त्वमेव माता च पिता त्वमेव...
पिता के लिए प्रस्तुत आपके भाव विचारणीय हैं, सराहनीय हैं.
बहुत बहुत आभार जी.
कष्ट उठाकर पुत्र को देते पॉकेट मनी
जवाब देंहटाएंखुद पहनते है पैंट - शर्ट पुरानी
बेटी को देते ब्यूटी पार्लर और नयी गाड़ी
खुद बनाते बिना क्रीम के दाढ़ी
आज का यथार्थ है इस कविता मे।
सादर
सुन्दर रचना...
जवाब देंहटाएंM kabhi unse kareeb nahi ho saki magar wo mujhse behad kareeb hain ye ekhsaas bhi maano sone sa laga tha... aapne jaga dia shayad.. thank u :)
जवाब देंहटाएंएक पिता के मान- सम्मान को प्रणाम .....
जवाब देंहटाएंमाँ एक जादू है, पिता एक स्तम्भ - जिसके निकट कोई भय नहीं रहता .
जवाब देंहटाएंसुन्दर अभिव्यक्ति!
जवाब देंहटाएंसंस्कृत में एक श्लोक है... पिता की महिमा के विषय में-
पिता धर्मः पिता स्वर्गः पिता हि परमं तपं! पित्रिप्रितिमापन्ने प्रीयन्ते सर्वदेवताः!
पिता के बारे में बेटियां ही सोच सकती है , सुन्दर भाव सजी रचना बेहद संवेदनशील आपकी सोच को नमन
जवाब देंहटाएंसंध्या जी,
जवाब देंहटाएंमाँ के बारे बहुत सारी रचनाये लिखी गई
किन्तु पिता के लिए बहुत कम रचनाए
पढ़ने को मिली आप ने पिता के सम्मान
में भाव पूर्ण सुंदर रचना लिखी,इसके लिए
आप वाकई बधाई की हक़दार है..लाजबाब पोस्ट
मेरे नए पोस्ट पर आइये,...
बेहद अर्थपूर्ण रचना. धीरेन्द्र जी की बातों से पूरी तरह सहमत.
जवाब देंहटाएंसुंदर रचना ..न जाने क्यों पिता कहीं पृष्ठभूमि में खो जाते हैं....
जवाब देंहटाएंइसीलिये तो पिता की तुलना आकाश से की जाती है, जो मौन रहकर पूर्ण आगोश व संरक्षण प्रदान करता है। भावप्रद रचना।
जवाब देंहटाएंमाता और पिता दोनों का ही स्थान अर्श पर है -
जवाब देंहटाएंयक्ष ने युधिष्ठिर से पुछा - बता आसमान से भी ऊँचा क्या है?
युधिष्ठिर ने कहा - पिता का साया
इतना पर्याप्त है शायद पिता के बारे में |
आपकी भावना शिरोधार्य है . जो परिवार का भरण-पोषण करते हैं उनकी बात ज्यादा कहाँ होती है . बहुत सुन्दर लिखा है . आभार .
जवाब देंहटाएंबेमिसाल शब्द और लाजवाब भाव...उत्कृष्ट रचना
जवाब देंहटाएंनीरज
wah!! sach me maa ke liye to bahuton shabd hain, pita jee ke liye pahlee baar padha!
जवाब देंहटाएंबेहतरीन शब्द समायोजन..... भावपूर्ण अभिवयक्ति....
जवाब देंहटाएंlajawaab rachna....jise bhoolna mushkil hai.hats off.
जवाब देंहटाएंबेहतरीन रचना।
जवाब देंहटाएंएक पिता होने के नाते आपका आभार.....
वाह संध्या जी,
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी कविता.... और बहुत अच्छी सोंच है आपकी....
मैंने "पिता" पे एक कविता आज से लगभग डेढ़ साल पहले लिखी थी, आपको उसका लिंक भेक रहा हूँ आशा है पसंद आयेगी....
http://vkashyaps.blogspot.com/2010/05/blog-post.html
धन्यवाद
true very true
जवाब देंहटाएंnice poem
bahut achcha laga peeta ke baare me achchi baaten sunkar ....nai soch!
जवाब देंहटाएंमेरे नए पोस्ट -प्रतिस्पर्धा=में आपका इंतजार
जवाब देंहटाएंमेरे पोस्ट आने के लिए आभार......
माँ के पास आंसुओं की गागर
जवाब देंहटाएंपिता का अर्थ संयम का सागर
BHAVPOORN SUNDAR RACHNA.
माँ का गुणगान तो बहुत कर लिया
जवाब देंहटाएंकभी पिता के बारे में भी सोचा है क्या?
ममता की छाँव में सुलाती माता
पर कठिनाइयों से उबारते पिता.
बहुत अच्छी सोंच.
पिता के विषय में एक बेटी ही सोच सकती है,,आज हर पिता को ऐसी ही बेटी की आवश्यकता है..सुन्दर भाव..
जवाब देंहटाएंपिता का महत्व ही माँ से कम नहीं होता ... बेटी के उदगार पढ़ना बहुत अच्छा लगा ...
जवाब देंहटाएंपिता का अर्थ संयम का सागर
जवाब देंहटाएंजिस भोजन को दुलार से खिलाती माता
उसको भी वही जुटाता खटता पसीना बहाता पिता
देवकी-यशोदा की ममतामयी लगती है गाथा
टोकरी में कन्हैया को लाता वासुदेव नहीं याद आता.....waah ! ek pita ke baare me ek beti hi soch sakti hai....achchi rachna....bdhai sweekaren...