बंद मुट्ठी में लिए बैठा है,
सपने, अपने और
और पीपल की घनी छाँव
नहीं समझे ना...
समझ भी नहीं सकोगे कभी
तुम्ही तो छोड़ आये थे
बेच आये थे उसे
अपनी सोने सी धरती
मिट्टी के मोल
नहीं तोड़ सका
नाता जीवन भर का
ना ही उसे भुला पाया
इसलिए अपना सब कुछ
मुट्ठी में समेट लाया....!
is naate ko todna namumkin hai
जवाब देंहटाएंअपनी सोने सी धरती
जवाब देंहटाएंमिट्टी के मोल
नहीं तोड़ सका
नाता जीवन भर का
ना ही उसे भुला पाया
इस नाते को भुलाना मुमकिन नहीं है।
सादर
वाह ...बहुत बढि़या
जवाब देंहटाएंकल 02/11/2011 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है।
धन्यवाद!
अच्छी कविता , प्रसंसनीय बधाई
जवाब देंहटाएंगूढ़ अर्थ लिए छठ की बधाई
जवाब देंहटाएंवाह,बहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर भावों से भरी पोस्ट.......पसंद आई|
जवाब देंहटाएंफुर्सत मिले तो हमारे ब्लॉग 'जज़्बात' पर भी नज़र डालें |
सुन्दर और गहन भाव लिए हुए अच्छी प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंनहीं तोड़ सका
जवाब देंहटाएंनाता जीवन भर का
ना ही उसे भुला पाया
इसलिए अपना सब कुछ
मुट्ठी में समेट लाया....!
बहुत खूब...गहन भावों की बहुत ख़ूबसूरत अभिव्यक्ति..
बहुत खूब... भावों की बहुत ख़ूबसूरत अभिव्यक्ति.. ..........बहुत ही सधे हुए शब्दों में आपने रचना को लिखा है .
जवाब देंहटाएंhttp/sapne-shashi.blogspot.com
भावों की बहुत ख़ूबसूरत अभिव्यक्ति...बहुत बढि़या
जवाब देंहटाएंसब कुछ मुट्ठी में समेट लाया...सुंदर भावों और शब्दों से सजी खुबशुरत रचना,बेहतरीन पोस्ट....
जवाब देंहटाएंलागी छूटे ना
जवाब देंहटाएंitna aasan nahi naate tod lena.
जवाब देंहटाएंशानदार. वो रिश्ते ही क्या जो टूट जाये.
जवाब देंहटाएंबेहतरीन पंक्तियां।
जवाब देंहटाएंजीवन में यही रिश्ता सबसे गहरा लगता है ..... सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंगहन भावो को खूबसूरती से उकेरा है।
जवाब देंहटाएंनहीं तोड़ सका
जवाब देंहटाएंनाता जीवन भर का
ना ही उसे भुला पाया
इसलिए अपना सब कुछ
मुट्ठी में समेट लाया....!
mitti ki mahak bhari sundar rachna..
मिट्टी से रिश्ता तोडा नहीं जाता ... न ही भुलाया जाता है ...
जवाब देंहटाएंबिम्बों और प्रतीकों का खूबसूरती से प्रयोग किया है आपने......गहन भावों की अभिव्यक्ति..
जवाब देंहटाएंगहन भावों की अभिव्यक्ति..
जवाब देंहटाएंमिट्टी का रिस्ता तो मन में पैठ बनाकर रहता है, उसे कैसे् तोड़ सकते हैं।
जवाब देंहटाएंbahut gahre bhav liye huye hai ye kavita...
जवाब देंहटाएंjai hind jai bharat
गूढ़ कहूँ या शब्दश: सत्य..
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आदरणीया संध्या जी
सस्नेहाभिवादन !
बहुत भावपूर्ण कविता के लिए आभार !
बंद मुट्ठी में लिए बैठा है,
सपने, अपने और
और पीपल की घनी छांव
इस प्रकार की रचनाओं का बहुत विस्तार संभव है …
अपनी जड़ों , अपनी मिट्टी से हम कभी अलग नहीं हो सकते … इस पीड़ा को अपनी जन्म भूमि से दूर जा बसने वालों में अच्छी तरह महसूस किया जा सकता है …
# मैंने स्वयं कई बार प्रवासी राजस्थानियों के सामने राजस्थानी में काव्य पाठ करते समय अपनी मातृ भाषा और मातृ भूमि को याद करते हुए कितनों की आंखों में पानी देखा है …
बधाई और मंगलकामनाओं सहित…
- राजेन्द्र स्वर्णकार
beautiful lines....
जवाब देंहटाएंआपको देवउठनी के पावन पर्व पर हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं !
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी अभिव्यक्ति,भावपरक कविता !
जवाब देंहटाएंनहीं समझे ना...
जवाब देंहटाएंसमझ भी नहीं सकोगे कभी
तुम्ही तो छोड़ आये थे
बेच आये थे उसे
अपनी सोने सी धरती.बहुत अच्छी अभिव्यक्ति.
गहरे भाव और अभिव्यक्ति के साथ लाजवाब रचना लिखा है आपने! बधाई!
जवाब देंहटाएंमेरे नये पोस्ट पर आपका स्वागत है-
http://seawave-babli.blogspot.com/
सुन्दर और बार- बार पढ़ा ! समझाने की कोशिश जरी !बधाई
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर और बार- बार पढ़ने की जिज्ञासा जाग्रत हो रही है । मेर पोस्ट पर आप आमंत्रित हैं । धन्यवाद ।
जवाब देंहटाएंअपनी मिटटी से कहीं गहरे जुड़े होने का
जवाब देंहटाएंअहम् अहसास
और बहुत खूब अक्क़ासी...
वाह !!
मर्मस्पर्सी
जवाब देंहटाएंबहुत भावपूर्ण कविता .
जवाब देंहटाएंसुन्दर व भावपूर्ण कविता!
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