हे मानव...
हे वेदों के रचनाकार
पञ्च महाभूतों का विराट, विकराल रूप
क्यों व्यथित है, व्याकुल क्यों है?
हाथ फैलाकर बनता याचक क्यों है?
हे मानव...
तूने ही सूर्य को सूर्य कहा
तब सूर्य सूर्य कहलाया
तूने ही चाँद को चाँद कहा
तब चाँद, चाँद कहलाया
सकल विश्व का नामकरण तेरे ही हाथ हुआ
तेरी ही महिमा थी की यह सर्वमान्य हुआ
हे प्रतिभावान मानव
तू बन बैठा सर्वस्व
तूने ही आविष्कार किये
तूने ही विकसित की तकनीक
तूने ही रचे अणु, परमाणु बम
तूने ही चाँद पर रखे कदम
तेरे ही कारण सजी थी सुन्दर थी ये धरा
तेरे ही कारण नहीं रही वह पहले जैसी उर्वरा
सब कुछ तेरे कारण है सब कुछ तेरा है किया धरा...
हे वेदों के रचनाकार
पञ्च महाभूतों का विराट, विकराल रूप
क्यों व्यथित है, व्याकुल क्यों है?
हाथ फैलाकर बनता याचक क्यों है?
हे मानव...
तूने ही सूर्य को सूर्य कहा
तब सूर्य सूर्य कहलाया
तूने ही चाँद को चाँद कहा
तब चाँद, चाँद कहलाया
सकल विश्व का नामकरण तेरे ही हाथ हुआ
तेरी ही महिमा थी की यह सर्वमान्य हुआ
हे प्रतिभावान मानव
तू बन बैठा सर्वस्व
तूने ही आविष्कार किये
तूने ही विकसित की तकनीक
तूने ही रचे अणु, परमाणु बम
तूने ही चाँद पर रखे कदम
तेरे ही कारण सजी थी सुन्दर थी ये धरा
तेरे ही कारण नहीं रही वह पहले जैसी उर्वरा
सब कुछ तेरे कारण है सब कुछ तेरा है किया धरा...
सही कहा आपने इन सब का कारण मानव ही तो है बहुत सुंदर भावाव्यक्ति, बधाई
जवाब देंहटाएंबहुत गहन चिंतन| धन्यवाद|
जवाब देंहटाएंसच है ....गहरी अभिव्यक्ति....
जवाब देंहटाएंमानव की उन्नति एवं पतन को बहुत ही अच्छे ढंग से आपने उकेरा है..
जवाब देंहटाएंआभार
मानव की यह अवस्था और वह अवस्था कितना अंतर है ......आपने बेहद गहनता से सभी को उकेरा है अपनी इस रचना में ....आपका आभार
जवाब देंहटाएंबहुत सही।
जवाब देंहटाएं--------
कल 16/09/2011 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!
तेरे ही कारण सजी थी सुन्दर थी ये धरा
जवाब देंहटाएंतेरे ही कारण नहीं रही वह पहले जैसी उर्वरा
सब कुछ तेरे कारण है सब कुछ तेरा है किया धरा...
सार्थक चिंतन ..
..एक गहरी संवेदना से निहित बेहतरीन रचना...धन्यवाद
जवाब देंहटाएंबेहतरीन
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर भावाव्यक्ति, बधाई
जवाब देंहटाएंsach khaha aapne....
जवाब देंहटाएंहे मानव...
जवाब देंहटाएंतूने ही सूर्य को सूर्य कहा
तब सूर्य सूर्य कहलाया
तूने ही चाँद को चाँद कहा
तब चाँद, चाँद कहलाया
सकल विश्व का नामकरण तेरे ही हाथ हुआ
तेरी ही महिमा थी की यह सर्वमान्य हुआ...akathniy bhawon ko saakar ker diya
मानव के विराट रूप को दर्शाती ...भावपूर्ण रचना
जवाब देंहटाएंant me kataaksh jabardast raha.
जवाब देंहटाएंbhaavpoorn rachna...manav ko apni kshamta ko samajhna chaahiye.
बहुत प्रेरक अभिव्यक्ति!
जवाब देंहटाएंहे मानव...
जवाब देंहटाएंतूने ही सूर्य को सूर्य कहा
तब सूर्य सूर्य कहलाया
तूने ही चाँद को चाँद कहा
तब चाँद, चाँद कहलाया
भावपूर्ण रचना,सार्थक
bilkul sarthak chintan.......
जवाब देंहटाएंkaafi gahri soch ...shandar kavita hain
जवाब देंहटाएंहे मानव...
जवाब देंहटाएंतूने ही सूर्य को सूर्य कहा
तब सूर्य सूर्य कहलाया
तूने ही चाँद को चाँद कहा
तब चाँद, चाँद कहलाया
सकल विश्व का नामकरण तेरे ही हाथ हुआ
गहन भावों का समावेश लिये बेहतरीन अभिव्यक्ति
बहुत सुंदर और गहन भावाव्यक्ति, बधाई....
जवाब देंहटाएंमानवता का कल्याण हो हमारी भी अभिलाषा है.
जवाब देंहटाएंबहुत ही प्रेरक रचना ....
जवाब देंहटाएंसच.. बहुत सुदर रचना।
जवाब देंहटाएंक्या बात है
सही है।
जवाब देंहटाएंअच्छा हो या बुरा, सब इंसानों का किया धरा है।
सुंदर प्रस्तुति।
आज 18/09/2012 को आपकी यह पोस्ट (विभा रानी श्रीवास्तव जी की प्रस्तुति मे ) http://nayi-purani-halchal.blogspot.com पर पर लिंक की गयी हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंधारा सुंदर भी मानव के कार्न हुयी और बंजर भी .... बहुत गहन अभिव्यक्ति
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