गुरुवार, 15 सितंबर 2011

हे मानव... संध्या शर्मा


हे मानव...
हे वेदों के रचनाकार
पञ्च महाभूतों का विराट, विकराल रूप
क्यों व्यथित है, व्याकुल क्यों है?
हाथ फैलाकर बनता याचक क्यों है?
हे मानव...
तूने ही सूर्य को सूर्य कहा
तब सूर्य सूर्य कहलाया
तूने ही चाँद को चाँद कहा
तब चाँद, चाँद कहलाया
सकल विश्व का नामकरण तेरे ही हाथ हुआ
तेरी ही महिमा थी की यह सर्वमान्य हुआ
हे प्रतिभावान मानव
तू बन बैठा सर्वस्व
तूने ही आविष्कार किये
तूने ही विकसित की तकनीक
तूने ही रचे अणु, परमाणु बम
तूने ही चाँद पर रखे कदम
तेरे ही कारण सजी थी सुन्दर थी ये धरा
तेरे ही कारण नहीं रही वह पहले जैसी उर्वरा
सब कुछ तेरे कारण है सब कुछ तेरा है किया धरा...
   

 

26 टिप्‍पणियां:

  1. सही कहा आपने इन सब का कारण मानव ही तो है बहुत सुंदर भावाव्यक्ति, बधाई

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  2. मानव की उन्नति एवं पतन को बहुत ही अच्छे ढंग से आपने उकेरा है..
    आभार

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  3. मानव की यह अवस्था और वह अवस्था कितना अंतर है ......आपने बेहद गहनता से सभी को उकेरा है अपनी इस रचना में ....आपका आभार

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  4. बहुत सही।
    --------
    कल 16/09/2011 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
    धन्यवाद!

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  5. तेरे ही कारण सजी थी सुन्दर थी ये धरा
    तेरे ही कारण नहीं रही वह पहले जैसी उर्वरा
    सब कुछ तेरे कारण है सब कुछ तेरा है किया धरा...

    सार्थक चिंतन ..

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  6. ..एक गहरी संवेदना से निहित बेहतरीन रचना...धन्यवाद

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  7. बहुत सुंदर भावाव्यक्ति, बधाई

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  8. हे मानव...
    तूने ही सूर्य को सूर्य कहा
    तब सूर्य सूर्य कहलाया
    तूने ही चाँद को चाँद कहा
    तब चाँद, चाँद कहलाया
    सकल विश्व का नामकरण तेरे ही हाथ हुआ
    तेरी ही महिमा थी की यह सर्वमान्य हुआ...akathniy bhawon ko saakar ker diya

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  9. मानव के विराट रूप को दर्शाती ...भावपूर्ण रचना

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  10. हे मानव...
    तूने ही सूर्य को सूर्य कहा
    तब सूर्य सूर्य कहलाया
    तूने ही चाँद को चाँद कहा
    तब चाँद, चाँद कहलाया

    भावपूर्ण रचना,सार्थक

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  11. हे मानव...
    तूने ही सूर्य को सूर्य कहा
    तब सूर्य सूर्य कहलाया
    तूने ही चाँद को चाँद कहा
    तब चाँद, चाँद कहलाया
    सकल विश्व का नामकरण तेरे ही हाथ हुआ

    गहन भावों का समावेश लिये बेहतरीन अभिव्‍यक्ति

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  12. बहुत सुंदर और गहन भावाव्यक्ति, बधाई....

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  13. मानवता का कल्याण हो हमारी भी अभिलाषा है.

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  14. सही है।
    अच्‍छा हो या बुरा, सब इंसानों का किया धरा है।
    सुंदर प्रस्‍तुति।

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  15. आज 18/09/2012 को आपकी यह पोस्ट (विभा रानी श्रीवास्तव जी की प्रस्तुति मे ) http://nayi-purani-halchal.blogspot.com पर पर लिंक की गयी हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .धन्यवाद!

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  16. धारा सुंदर भी मानव के कार्न हुयी और बंजर भी .... बहुत गहन अभिव्यक्ति

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