शनिवार, 11 जून 2011

हम एक गीत गुनगुनाते हैं........ संध्या शर्मा

राह दुनिया की वो दिखाते हैं,
हम तो गलियां भी भूल जाते हैं.

उनकी यादों का सहारा लेकर,
अपनी तनहाइयाँ सजाते हैं.

जिनको समंदर डुबो नहीं सकता,
एक प्याले में डूब जाते हैं.

दाद देते हैं मेरे गीतों की,
क्या करें हम भी मुस्कुराते हैं.

कोई हमदर्द अब नहीं मिलता,
सब के सब घाव ही दिखाते हैं.

दर्द सीने में जब भी उठता है,
हम एक गीत गुनगुनाते हैं.

37 टिप्‍पणियां:

  1. जिनको समंदर डुबो नहीं सकता,
    एक प्याले में डूब जाते हैं.
    kya baat hai ! superb

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  2. दाद देते हैं मेरे गीतों की,
    क्या करें हम भी मुस्कुराते हैं
    muskurana bhi chahiye ...akhir itna sundar jo likhti hain aap .badhai .

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  3. कोई हमदर्द अब नहीं मिलता,
    सब के सब घाव ही दिखाते हैं.

    kya khoob...

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  4. बहुत सुन्दर भावाव्यक्ति।

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  5. दर्द सीने में जब भी उठता है,
    हम एक गीत गुनगुनाते हैं.

    बेहतरीन पंक्तियाँ हैं.

    सादर

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  6. कोई हमदर्द अब नहीं मिलता,
    सब के सब घाव ही दिखाते हैं
    हरेक पंक्ति अंतस को छू जाती है बहुत बेहतरीन रचना.....

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  7. बहुत खूबसूरत कविता हैँ ।
    मन के एहसासोँ की अच्छी अभिव्यक्ति हुई हैँ। ....आभार संध्या जी

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  8. कोई हमदर्द अब नहीं मिलता,
    सब के सब घाव ही दिखाते हैं.
    सच्ची और प्रभावित करती पंक्तियाँ.... बहुत बढ़िया

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  9. कोई हमदर्द अब नहीं मिलता,
    सब के सब घाव ही दिखाते हैं.
    bahut khub ....

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  10. kya bat hain
    bahut khoob
    kam shabdo main bahut kuch kah dia aapane

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  11. सुन्दर एवं भावपूर्ण प्रस्तुति ! बधाई !

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  12. इन लाइनों पर कौन बिछ न जाए -
    जिनको समन्दर डुबो नहीं सकता ,
    एक प्याले में डूब जातें हैं ।
    सुन्दर ,मनोहर ,मन भावन रचना ।
    बधाई भी ,परोसने के लिए आभार भी .

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  13. सुन्दर एवं भावपूर्ण प्रस्तुति
    साभार- विवेक जैन vivj2000.blogspot.com

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  14. Dard jab sine me uthta hai tn , ek geet gungunate hain. . . Lajwab parstuti
    Jai hind jai bharat

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  15. उनकी यादों का सहारा लेकर,
    अपनी तनहाइयाँ सजाते हैं...

    खूबसूरत है इस ग़ज़ल का ग़ज़ल ...वैसे सभी शेर लाजवाब ...

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  16. दर्द सीने में जब भी उठता है,
    हम एक गीत गुनगुनाते हैं.

    बहुत खूब !

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  17. राह दुनिया की वो दिखाते हैं,
    हम तो गलियां भी भूल जाते हैं.

    बहुत ही सही बात कही ये आपने !
    --------------------------------------------
    क्या मानवता भी क्षेत्रवादी होती है ?

    बाबा का अनशन टुटा !

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  18. उनकी यादों का सहारा लेकर,
    अपनी तनहाइयाँ सजाते हैं...
    हमें तो यह पंक्ति अच्छी लगी बधाई

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  19. जिनको समंदर डुबो नहीं सकता,
    एक प्याले में डूब जाते हैं.
    दाद देते हैं मेरे गीतों की,
    क्या करें हम भी मुस्कुराते हैं...
    दिल को छू गयी ये पंक्तियाँ! बहुत सुन्दर, लाजवाब और भावपूर्ण रचना लिखा है आपने! उम्दा प्रस्तुती!

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  20. अरे वाह संध्या जी.इतनी प्यारी ग़ज़ल आपने लिखी.मज़ा आ गया पढ़कर.एक एक शेर लाजवाब.

    जिनको समंदर डुबो नहीं सकता,
    एक प्याले में डूब जाते हैं.

    अहा,क्या कहने है.ग़ज़ब का शेर.

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  21. दर्द सीने में जब भी उठता है,
    हम एक गीत गुनगुनाते हैं.

    -वाह!! बहुत बढ़िया.

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  22. बहुत खुबसूरत रचना दिल को छु गई हकीकत ब्यान करती हुई |
    सुन्दर रचना |

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  23. आदरणीय संध्या शर्मा जी...सुन्दर कविता...

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  24. दर्द सीने में जब भी उठता है,
    हम एक गीत गुनगुनाते हैं.

    esa to main karta hun....

    badhai

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  25. दर के उटःाने पर जो गा सके मुस्कुरा सके समझो उसने जीना सीख लिया
    अच्छे भाव
    बधाई

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  26. जिनको समंदर डुबो नहीं सकता,
    एक प्याले में डूब जाते हैं.

    bahut hee khoob ,sandhya ji.

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  27. संध्या जी

    जितनी सहजता से आपने बड़ी बातें कह दी हैं ............वाकई प्रशंसनीय है

    किसी एक शेर को क्या चिन्हांकित करूँ , हर शेर खुद को बयां कर रहा है

    पूरी ग़ज़ल तारीफ़ के काबिल है ..................

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  28. सुन्दर एवं भावपूर्ण प्रस्तुति|

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  29. दाद देते हैं मेरे गीतों की,
    क्या करें हम भी मुस्कुराते हैं.
    पढ़ कर अच्छा लगा. बहुत अच्छी रचना आभार

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