गुरुवार, 5 मई 2011

चिड़िया............. संध्या शर्मा


ये नन्ही सी चिड़िया, मेरे बचपन की साथी,
 मुझसे बातें करती, मेरे संग थी गातीं .
इनका साथ मुझे खूब भाता,
पिछले जन्म का कुछ तो था नाता .
दिन भर इन्हें दाने थी चुगाती,
धूप में रहने पर माँ थी डांटती .
जैसे तैसे रात होती,
तो सपनों में मैं चिड़िया होती.
सुनहरे से पंखों वाली चिड़िया,
सुनहरी थी जिसकी दुनिया.
ज़ोर से दौड़ लगाती,
और दूर गगन में उड़ जाती.
कभी तितली संग इठलाती,
तो कभी भौरों संग गुनगुनाती.
सुबह जागती तो बड़ी खुश होती,
सपने वाली बातें माँ से कहती.
माँ पहले तो खूब हंसती,
फिर मुझसे यही कहती.
उड़ने अकेले मत जाया कर,
शैतान भाई-बहनों को भी संग ले जाया कर.
मैं जैसे-जैसे बड़ी होती गई,
वैसे-वैसे चिड़ियाँ कम होती गईं.
दाने अब भी डालती हूँ,
पर उन्हें वहीँ पड़ा पाती हूँ.  
न अब चिड़ियाँ  इन्हें चुगने आती है ,
और माँ भी बस यादों में ही आती है.
एक दिन अचानक...
एक चिड़िया मेरे घर में नज़र आई,
ख़ुशी से मेरी आँखें छलक आई.
मैंने पूछा इतने दिनों तक कहाँ थी,
मुझसे मिलने क्यों नहीं आती थी.
वह बोली.....!
मैं भी तुम्हे खोजती थी,
तुमसे मिलना चाहती थी.
उड़कर इधर उधर घूमती थी,
हर बार भटक जाती थी.
इंसानों ने जो ऊँचे-ऊँचे टॉवर लगाये हैं,
ये ही हमारे लिए मुसीबत लाये हैं.
हमें जाना कहीं और होता है,
और चले कहीं जाते हैं.
ये हमें बहुत सताते हैं,
हमें दिशा भ्रमित कर जाते हैं.
इतना कहकर वह फुर्र से उड़ गई,
और मुझे सोचने के लिए छोड़ गई.
मैं तो अभी भी चिड़िया ही बनना चाहती हूँ,
ऊँचे गगन में जी भरके उड़ना चाहती हूँ.
अब मैं इस सपने का क्या करूँ,
अगले जनम में चिड़िया बनूँ या न बनूँ ........     
   

50 टिप्‍पणियां:

  1. banenge n chidiyaa ... udker pahunchenge amma baba ke aangan ki munder per , chugenge daana---- phir aayega wo zamana

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  2. हाँ रश्मिजी बहुत याद आती है माँ,
    चिड़िया तो फिर भी आ गई,
    पर लौट कर नहीं आती माँ....

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  3. संध्या जी कमाल है आपके भावों की उड़ान का,चिड़िया बन चिड़िया के दर्द को समझती हों ,और हम सब को सोचने को मजबूर करती हों.
    कहाँ जा रहें हैं हम आधुनिक विकास के नाम पर. सहजता,सरलता निशदिन खोती ही जा रही है हमारी.
    मेरे ब्लॉग पर आयें,नई पोस्ट जारी की है.

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  4. बहुत ही सटीक लिखा है आपने.
    विकास के नाम पर हम बहुत कुछ गँवा रहे हैं.
    तकलीफ तो इस बात की है कि बहुत कम लोग इस बात का अहसास कर रहे हैं.
    आपके सार्थक सृजन को सलाम.

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  5. MAM AAPKI YE RACHNA BDI PYARI HAI.. ISKA SIDHA SANBANDH INSANO DWARA JANGLO KE KTAN SE HAI JISSE HUMARA PRYAWARAN BIGAD RAHA HAI. . . . . . . MAM AAP MERE BLOG PAR AAYI MERI RACHNA KO PADHA OR US PAR APNA VICHAR DIYA , AAPKA SUKRIYAA. . .ME HUMESA KOSIS KARUNGA KI MERI KAVIA, GAJAL OR SHAYRI AAP LOGO KO NIRAAS NA KARE. . . . . . JAI HIND JAI BHARAT

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  6. बहुत सुन्दर रचना, बेहतरीन अभिव्यक्ति!

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  7. बहुत सुंदर ... संध्याजी ...कल आज और कल के बीच ...नन्ही चिड़िया का बिम्ब लेकर सब कुछ कह डाला आपने.....

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  8. आपको बधाई और शुभकामनाएं |

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  9. वाह !संध्या जी क्या कहने --बचपन की एक कविता याद आ गई --"एक चिड़ियाँ के बच्चे चार
    उड़ते रहते पंख पसार
    उतर से दक्षिण हो आए
    पूरब से पश्चिम हो आए
    माँ को ये शब्द सुनाए
    'देख लिया है जग को सारा --
    अपना घर है सबसे प्यारा !"

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  10. श्रीमान जी, क्या आप हिंदी से प्रेम करते हैं? तब एक बार जरुर आये. मैंने अपने अनुभवों के आधार ""आज सभी हिंदी ब्लॉगर भाई यह शपथ लें"" हिंदी लिपि पर एक पोस्ट लिखी है. मुझे उम्मीद आप अपने सभी दोस्तों के साथ मेरे ब्लॉग www.rksirfiraa.blogspot.com पर टिप्पणी करने एक बार जरुर आयेंगे. ऐसा मेरा विश्वास है.

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  11. सोचने को मजबूर करती हकीकत्।

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  12. मैं तो अभी भी चिड़िया ही बनना चाहती हूँ,
    ऊँचे गगन में जी भरके उड़ना चाहती हूँ.
    अब मैं इस सपने का क्या करूँ,
    अगले जनम में चिड़िया बनूँ या न बनूँ ...

    बहुत सुन्दर भाव व पंक्तियाँ। सुन्दर रचना प्रस्तुत करने के लिए हार्दिक आभार।

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  13. वाह ! संध्या जी ..
    इस कविता का तो जवाब नहीं !
    कविता के भाव बड़े ही प्रभाव पूर्ण ढंग से संप्रेषित हो रहे हैं !
    आभार!

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  14. बहुत सुन्दर, प्यारी और भावपूर्ण रचना लिख है आपने! बधाई!

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  15. Very touching and mesmerizing poem.. writing this comment with my eyes wet.. really powerful words.

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  16. संध्या जी,
    आपके पोस्ट पर पहली बार आया हूं।आपके भावनाओं की उड़ान अच्छी लगी। मेरे पोस्ट पर आपका स्वागत है।

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  17. आपको भी चिड़ियों ने आकर्षित किया। ये होती ही ऐसी हैं । इनके संग मन हल्का हो जाता है। जब तक ये हैं,हम हैं। ..अच्छा लगा।

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  18. वाह! शहरीकरण और प्रकृति के बिगडते रिश्ते की यह आधुनिकता कविता में कितनी प्रखरता से उजागर हुयी है.

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  19. मूक पंचियों का दर्द लिखा है आपने ... बहुत संवेदनशील रचना ...

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  20. bahut gahan bhav liye sunder abhivykti .
    kash ye apne hath me hota ki kya banenge........jeevan me bus khwab hee swachand haijo chidiya jaisee udan bharne me saksham hai.

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  21. 'न अब चिड़ियाँ इन्हें चुगने आती है

    और माँ भी बस यादों में आती है '

    ...............कल्पनाओं की उड़ान , विह्वल भाव , आज़ादी की चाह,माँ की याद और मन का दर्द

    क्या-क्या नहीं समाया है आपकी सुन्दर रचना में !

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  22. िलने क्यों नहीं आती थी.
    वह बोली.....!
    मैं भी तुम्हे खोजती थी,
    तुमसे मिलना चाहती थी.
    उड़कर इधर उधर घूमती थी,
    हर बार भटक जाती थी.
    इंसानों ने जो ऊँचे-ऊँचे टॉवर लगाये हैं,
    ये ही हमारे लिए मुसीबत लाये हैं.
    हमें जाना कहीं और होता है,
    और चले कहीं जाते हैं.
    ये हमें बहुत सताते हैं,
    हमें दिशा भ्रमित कर जाते हैं.
    इतना कहकर वह फुर्र से उड़ गई,
    और मुझे सोचने के लिए छोड़ गई.
    मैं तो अभी भी चिड़िया ही बनना चाहती हूँ,

    waah....
    chidiya ko padhkar man mastish me ek sunder hawa ka jhonka sparsh karke gujar gaya......

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  23. बहुत सुंदर कल्पना एवं चित्रण ।

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  24. महानगर नेपेड़ परिंदों से हुआ ,कितना बुरा ,सुलूक ।
    सुन्दर बिम्ब लिए है आपकी कविता ,भाव और चित्रांकन भी गज़ब का है . कौन कब तक चिड़िया रह पाता है .यहाँ हर तरफ चिड़ी फैंक दी,मौसम की संदूक ,
    मार हैं .

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  25. महानगर ने फेंक दी मौसम की संदूक ,
    पेड़ परिंदों से हुआ ,कितना बुरा सुलूक ।
    सुन्दर हैं भाव आपके ,चिड़ियों के प्रति अनुराग ,राग ,कौन कब तक चिड़िया बन जी पता है ,हर तरफ चिड़ीमार हैं .

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  26. चिड़िया को मुक्ताकाश में यूँ ही उड़ने दीजिए. बहुत सुंदर कविता सुंदर भाव लिए हुए, बधाई.

    जवाब देंहटाएं
  27. मैं तो अभी भी चिड़िया ही बनना चाहती हूँ,
    ऊँचे गगन में जी भरके उड़ना चाहती हूँ.
    अब मैं इस सपने का क्या करूँ,
    अगले जनम में चिड़िया बनूँ या न बनूँ ........

    सच में अब चिडियाएँ कहाँ दिखाई देती हैं...भावनाओं की चिड़िया को ऐसे ही उड़ने दीजिए...बहुत सुन्दर भावपूर्ण रचना..

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  28. वाकई चिडियों के दर्द का खूब वर्णन किया है आपने...

    दुनाली पर पढ़ें-
    कहानी हॉरर न्यूज़ चैनल्स की

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  29. मैं भी तुम्हे खोजती थी,
    तुमसे मिलना चाहती थी.
    उड़कर इधर उधर घूमती थी,
    हर बार भटक जाती थी.
    इंसानों ने जो ऊँचे-ऊँचे टॉवर लगाये हैं,
    ये ही हमारे लिए मुसीबत लाये हैं.
    हमें जाना कहीं और होता है,
    और चले कहीं जाते हैं.


    इंसान ने अपने सुख के साधनों के लिए प्रकृति के बाकी जीवों की परवाह नहीं की है ...उसका एक मात्र लक्ष्य अपने सुख के साधनों का विकास करना रहा है ..वह यह भूल गया है कि उसके आलावा भी इस धरती पर जीव रहते हैं उनकी भी कुछ आवश्यकताएं हैं ...आपने बहुत गहरे से इस भाव पर प्रकाश डाला है एक चिड़िया के माध्यम से ...आपका आभार

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  30. संध्या जी पहली बार आपके ब्लॉग पर आया , रश्मि जी का धन्यवाद, आपका रचना संसार बेहद संवेदनशील और साहित्य की धरोहर सा लगा, पढ़कर साहित्यिक मन प्रफुल्लित हुआ

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  31. संध्या जी बहुत सुन्दर रचना आज हमारे मोबाईल क्रांति के कारन सच में तरंगे इन्हें काल के गाल में भेजती जा रही है अब बड़ी मुश्किल से गौरैया , कौवा , बुलबुल, नील कंठ ,मोर के दर्शन होते हैं यहाँ तक की प्रवासी पक्षी तक भी भटक कहीं और रुख कर रहें है आगे न जाने क्या होगा -अगले जनम में चिड़िया ---????
    हर बार भटक जाती थी.
    इंसानों ने जो ऊँचे-ऊँचे टॉवर लगाये हैं,
    ये ही हमारे लिए मुसीबत लाये हैं.
    शुक्ल भ्रमर ५

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  32. अच्‍छी रचना।
    बेहतरीन बिंब।

    शुभकामनाएं आपको।

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  33. बहुत सुंदर कल्पना एवं चित्रण ,अच्‍छी रचना, शुभकामनाएं.....

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  34. चिड़ियों से आपके दिली लगाव को दर्शाती है आपकी ये कविता. वाह .

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  35. मैं तो अभी भी चिड़िया ही बनना चाहती हूँ,
    ऊँचे गगन में जी भरके उड़ना चाहती हूँ.
    अब मैं इस सपने का क्या करूँ,
    अगले जनम में चिड़िया बनूँ या न बनूँ ........

    देर से आने के लिए क्षमा चाहूँगा.

    ऊपर लिखी लाइनें बहुत ही अच्छी हैं , और वैसी ही अच्छी आपकी ये पोस्ट
    ह्रदय से आभार ,इस अप्रतिम रचना के लिए...

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  36. बेहतरीन भाव और अभिव्यक्त ....
    आप बहुत संवेदनशील हैं ...हार्दिक शुभकामनायें !!

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  37. मैं तो अभी भी चिड़िया ही बनना चाहती हूँ,
    ऊँचे गगन में जी भरके उड़ना चाहती हूँ.

    बहुत ही खूबसूरत शब्द दिए हैं आपने कविता को.

    सादर

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  38. bahut khoob likha aapane...
    aajkal panchiyo ko udane ki aazadi nahi hain
    aur sach main chidiyo to bahut kam dikhti hain

    aapaka blog follow kar raha hun ab se
    mere blog par bhi aaiyega...
    http://iamhereonlyforu.blogspot.com/

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  39. bahut achi kavita..
    कृपया मेरी भी कविता पढ़ें और अपनी राय दें..
    www.pradip13m.blogspot.com

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  40. चिड़ियों के माध्यम से आपने जीवन के इन्द्रधनुषी रंगों को प्रदर्शित किया है। बहुत दिनों बाद किसी के ब्लोग पर इतना सुन्दर शब्द संयोजन पढ़ने मिला। आपको बहुत बहुत साधुवाद!

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  41. beautifully written mam, and i am sure it looks like some poems that are in our text books i mean it is worthy of it for sure...

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  42. सुन्दर कविता के लिए बधाई स्वीकार करें !
    मेरी नयी पोस्ट पर भी आपका स्वागत है : Blind Devotion - अज्ञान

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  43. बढ़िया पोस्ट....
    सामायिक अभिव्यक्ति...

    आभार
    अनु

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