वेदों ने कहा है 'यत्र नारी पूज्यते रम्यते तत्र देवता। नारी को देवी का सर्वोच्च स्थान देने के बाद भी यहाँ नारी सदियों से प्रताडि़त ही रही। भारतीय धार्मिक इतिहास का अवलोकन करने पर शक्ति पूजा का उद्भव नारी से माना गया है और नारी को शक्तिस्वरूपा कहा गया है। हमारी संस्कृति में ही ईश्वर को मां के रूप में पूजे जाने की परंपरा है, लेकिन नारी को शक्ति के रूप में पूजने वाले इसी भारतीय समाज में प्राचीन काल से ही नारी की दशा सोचनीय रही है। कहने के लिए तो नारी जीवन रूपी गाड़ी का दूसरा पहिया है, जिसके बिना जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती, लेकिन वही नारी सदियों से तरह-तरह के अत्याचारों का शिकार होती रही है। जो समाज देवताओं की पत्नियों की शक्ति के रूप में पूजा करता है, वही समाज अपने घर पर पत्नी, बहन, बेटी और बहू पर अत्याचार करने में जरा भी संकोच नही करता।
इसके दुर्भाग्यपूर्ण उदाहरण और क्या हो सकते हैं कि सरे आम राह चलती महिला ही बलात्कार का शिकार हो जाती है। दुधमुंही बच्चियां तक सुरक्षित नही हैं। माना कि प्रकृति ने भी शारीरिक रूप से नारी पुरुष की अपेक्षा कमजोर बनाया है लेकिन इसका यह मतलब नहीं है कि नारी की इस कमजोरी का लाभ उठाकर उसका अपमान किया जाए। आज कन्या भ्रूण हत्या को रोकने की मुहीम चलाई गई है। घरेलू हिंसा को लेकर सजा निश्चित है। लेकिन आए दिन जो महिलाओं को उठाकर उनसे बलात्कार हो रहे हैं, उनकी निर्मम हत्या हो रही है। इन घटनाओं के बाद महिला आयोग एक चिट्ठी लिख कर अपने कर्तव्य की इतिश्री कर लेता है।
घर पर ही क्यों आज तो राह चलती कोई भी स्त्री सुरक्षित नही है। पिछले दिनों दिल्ली की सड़क पर कैंची के 25-30 घाव देकर सरेआम एक स्त्री की जान ले ली एक सरफिरे ने। उसपर दुःख इस बात का है, कि लोग एक स्त्री को जान से मारने का तमाशा देखते हुए, उसकी बिना सहायता किए आगे बढ़ लेते हैं। क्या सारी भीड़ मिलकर एक हमलावर को रोकने का सामर्थ्य नही रखती? कितना असंवेदनशील होता जा रहा है, हमारा समाज। कल उस स्त्री के स्थान पर किसी की भी बहन, माँ, बेटी हो सकती है। क्या तब भी तमाशबीन ही बने रहेंगे लोग?
प्रश्न यह उठता है कि क्या महिलाओं के प्रति इस तरह के बढ़ते हुए अपराधों को रोक जा सकता है? बिलकुल... यदि समाज नारी के प्रति अपने नजरिए को बदल दे तो यह भी हो सकता है, और शुरुआत परिवारिक स्तर पर की जानी चाहिए। परिवार के हर बेटे को बेटी की सुरक्षा की जिम्मेदारी सौंपकर उन्हें माँ, बहन, बेटी का सम्मान करना सिखाया जाए तो वह बाहर जाकर हर स्त्री का सम्मान करेगा, क्योंकि ऐसा करना उसके संस्कारों में शामिल हो जाएगा।
महिलाओं को कानूनी सुरक्षा और उनके प्रति अपराध करने वाले अपराधियों को कडे़ से कड़ा और शीघ्र दंड मिले, ऐसे परिवार का सामाजिक बहिष्कार करना चाहिए। तब शायद महिलाओं की इस समस्या का निवारण सम्भव होगा।
युग बदला, सब बदला, लेकिन नारी के प्रति जो सदियों पूर्व बर्बर युग की सोच थी, आज भी वही है। ये समाज नही बदला, और न जाने कब बदलेगा?
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, "भाखड़ा नंगल डैम पर निबंध - ब्लॉग बुलेटिन“ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
जवाब देंहटाएंविचारणीय
जवाब देंहटाएंजब तक लोगों मानसिकता नहीं बदलती नारी को केवल वस्तु समझते रहेंगे .बड़ी पुरानी है यह मानसिकता महाभारत काल में और उससे भी पहले माधवी की कथा याद कीजिये .
जवाब देंहटाएंआज तो स्थिति और बदतर हो गई है । पता नहीं ये बर्बर कब मानव बनेंगे ।
जवाब देंहटाएंमानसिकता नहीं बदलती लगता है और स्थिति बहुत बदतर होती रहेगी
जवाब देंहटाएंबहुत विचारणीय आलेख है .. और अब समय आ गया है की पुरुष अपनी मानसिकता बदले ... नहीं तो समाज नीचे ही जाने वाला है ...
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