भारतीय जनमानस में लोकपर्वों का अत्यधिक महत्व है, उत्सवधर्मी समाज इन पर्वों को बड़ी धूमधाम से मनाता है। ग्रामीण भारत के अधिकांशत: त्यौहार कृषि पर आधारित होते हैं, ऐसा ही एक त्यौहार महाराष्ट्र के विदर्भ में पोला मनाया जाता है। जो कृषि कार्य में संलग्न पशुधन के प्रति श्रद्धा एवं आभार व्यक्त करने का पर्व है। अमावस्या को बड़ा पोला मना कर उसके दूसरे दिन पड़वा को बच्चों के आनंद व उन्हें अपनी माटी से जोड़ने हेतु भोसला शासन काल में तान्हा पोला की शुरुआत हुई।
इस दिन छोटे बच्चे लकड़ी से बने सुंदर सुन्दर बैलों को सजाकर शाम को हनुमान मंदिर के पास सुंदर वेशभूषा में सज संवर के एकत्रित होते हैं। आम की पत्तियों और फूलों से बने तोरण को तोड़कर पोळा फूटता है। इसके बाद हर घर के द्वार पर पुत्र की माता या दादी के द्वारा बैल की पूजा तथा बालक का तिलक करके स्वागत किया जाता है व उपहार स्वरुप मिठाई, चॉकलेट बिस्किट या पैसे दिए जाने की परंपरा है जिसे " बोजारा" कहते हैं. इसके साथ ही भीगी हुई चने की दाल व ककड़ी का प्रसाद बांटा जाता है।
अनेक स्थानों पर लकड़ी के बैलों की सजावट स्पर्धा, वेशभूषा स्पर्धा का आयोजन किया जाता है, विजेता को पुरस्कार प्रदान किए जाते हैं। इस दिन बच्चों का उत्साह तो देखते ही बनता है, बड़ों को भी आपसी मेल - मिलाप का अवसर मिल जाता है।
इसी दिन अनिष्ट के निवारण व बुराई के विरोध में मारवत उत्सव भी मनाया जा रहा है, एक सौ सैंतीस वर्ष पूर्व प्रारंभ हुए इस उत्सव को मनाने की परम्परा आज भी क़ायम है। सम्पूर्ण विदर्भवासियों के लिए यह विशेष आकर्षण का केंद्र होता है। इसमें काली मारबत, पीली मारबत व आतंकवाद, देशद्रोह, भ्रष्टाचार व सामाजिक व राष्ट्रीय मुद्दों के तहत प्रतीकात्मक बड़ग्या के पुतले बनाए जाते हैं। जुलुस के साथ इन्हें शहर में घुमाया जाता है, व इन सभी बुराईयों को "घ्यून जा गे ... मारबत (साथ ले जा मारबत) के नारों द्वारा मारबत से साथ अपने ले जाने की प्रार्थना की जाती है। संदल, ढोल - नगाड़े और अबीर-गुलाल खेलते हुए अंत में नाईक तालाब में विसर्जन कर दिया जाता है।
लोक पर्व हमारे मानस में इतने रचे बसे हैं कि आधुनिकता की आँधी इन्हें उड़ाकर नहीं ले जा सकी, भले ही रुप बदल गया हो पर लोक पर्व वर्तमान में भी कायम हैं। यही हमारी संस्कृति है जो गाँवों का शहरीकरण होने के बाद भी जीवित है और प्रकृति के प्रति आस्था व्यक्त करते हुए पशुओं एवं अन्य प्राणियों का सम्मान करना सिखाती है।
लोकपर्व हमारी थाती हैं, आपने हमारे ज्ञान को और भी समृद्ध किया। आभार
जवाब देंहटाएंलोक पर्व संस्कृति से जोड़ते हुए पर्यावरण के प्रति जागरूक बनाते हैं। इन पर्वों में प्रकृति द्वारा मानव जीवन को सरल बनाने वाले माध्यमों के प्रति आभार व्यक्त करते हैं वे पशु पक्षी हों या पेड़ पौधे !
जवाब देंहटाएंअच्छी जानकारी !
तान्हा पोळा एवं मारबत-बड़ग्या उत्सव के बारे में सुन्दर जानकारी प्रस्तुति हेतु धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, "नाम में क्या रखा है!? “ , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
जवाब देंहटाएंसुंदर और सार्थक जानकारी
जवाब देंहटाएंसादर
m.p. k ek matr distick bakaghat ne bhi manaya jata h yaha parv....
जवाब देंहटाएंअच्छी जानकारी
जवाब देंहटाएंबहुत खुब ....
जवाब देंहटाएंमेरे लिए बिलकुल नयी जानकारी है ... सार्थक लेख
जवाब देंहटाएंअच्छा लगा नये उत्सव को जानकर ।
जवाब देंहटाएंपोला छत्तीसगढ़ का भी महत्वपूर्ण त्योहार है ।
जवाब देंहटाएंमारबत पर्व के बारे में नई जानकारी मिली ।
आभार आपका ।
मारबत-बड़ग्या उत्सव के बारे में सुन्दर जानकारी
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