भारत देश उत्सव, पर्वों, रंगों एवं विभिन्न संस्कृतियों का संगम है,यहां साल भर, हर मौसम में प्रतिदिन त्यौहार मनाए जाते हैं यह हमारी
प्राचीन एवं उन्नत संस्कृति का परिचायक है। इन त्यौहारों में हमारी उत्सवधर्मिता एवं संस्कारों की झलक दिखाई देती है. त्यौहारों का यह देश अपनी विविधता में एकता के लिए ही विश्व भर में जाना जाता है।
प्राचीन एवं उन्नत संस्कृति का परिचायक है। इन त्यौहारों में हमारी उत्सवधर्मिता एवं संस्कारों की झलक दिखाई देती है. त्यौहारों का यह देश अपनी विविधता में एकता के लिए ही विश्व भर में जाना जाता है।
रक्षाबंधन हमारी संस्कृति की पहचान है और ऐतिहासिक, धार्मिक एवं पौराणिक महत्व रखने वाले इस त्यौहार पर हर भारतवासी को गर्व है। लेकिन वर्तमान समय में भारत में इस पर्व को गंभीरता से लेने की आवश्यक है, क्योंकि एक तरफ तो बहनों की रक्षा के लिए इस विशेष पर्व को मनाया जाता है वहीं दूसरी ओर कन्या भ्रूण हत्या जैसे अपराधों की संख्या तेज़ी से बढ़ती जा रही है। यदि कन्या-भ्रूण हत्या पर जल्द ही काबू नहीं पाया तो देश में लिंगानुपात और भी अधिक तेज गति से घट जाएगा जिससे सामाजिक असंतुलन बढ़ेगा।
लड़ रही राजनीतिक पार्टियों के लिए आधी आबादी आज भी कोई मुद्दा नहीं है. 2001 से 2011 के बीच शिशु लिंगानुपात में तेज गिरावट दर्ज की गई है. 2011 की जनगणना के अनुसार स्त्री-पुरुष लिंगानुपात 940 प्रति हजार है, लेकिन 0-6 वर्ष के बच्चों में लड़कियों का अनुपात घटकर महज 914 ही रह गया है। गणना के दौरान यह भी पता चला कि हरियाणा में ऐसे 70 गांव हैं जहां कई वर्षों से एक भी बच्ची ने जन्म नहीं लिया है। ऐसे में ‘बेटी पढ़ाओ बेटी बचाओ’ जैसे नारे महज छलावा लगते हैं।
बेटी को बोझ समझने की मानसिकता को बदलना होगा, तभी हम स्वस्थ व संतुलित समाज की कल्पना को साकार करने में सफल होंगे। महिलाओं को स्वयं आगे बढ़कर अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़नी होगी और कन्या भ्रूण हत्या रोकने के लिए प्रयास करने होंगे। बेटियाँ होगी तभी हम तीज त्यौहार मना सकेगें। बेटे -बेटी के भेदभाव को खत्म करके संतुलित समाज की स्थापना होगी। तभी इस पर्व की सच्ची सार्थकता होगी। हम आशा करते हैं कि और रक्षाबंधन का यह त्यौहार हमेशा हर्षोल्लास के साथ मनाए जाएगा और हर भाई को बहन के प्रति अपने कर्तव्य की याद दिलाता रहेगा।
एकदम सही....
जवाब देंहटाएंबेहद सार्थक और सटीक बात....
सस्नेह
अनु
आपकी यह उत्कृष्ट प्रस्तुति कल शुक्रवार (28.08.2015) को "सोच बनती है हकीक़त"(चर्चा अंक-2081) पर लिंक की गयी है, कृपया पधारें और अपने विचारों से अवगत करायें, चर्चा मंच पर आपका स्वागत है।
जवाब देंहटाएंसार्थक पोस्ट
जवाब देंहटाएंसमसामयिक पोस्ट..
जवाब देंहटाएंसार्थक और सच्ची पोस्ट।
जवाब देंहटाएंसच कहा है की बेटियों के बिना त्यौहार क्या...समय के साथ बेटियों के प्रति सोच में बदलाव आ रहे हैं...बहुत सारगर्भित आलेख..
जवाब देंहटाएंसहमत हूँ आपकी बात से ... बेटियों के बिना हर त्यौहार ... हर ख़ुशी व्यर्थ है ... हास के रंग, प्रेम के ताने बाने तो बेटियाँ ही बुनती हैं हर रिश्ते में ... सच में बदलाव की तेज़ी से जरूरत है ...
जवाब देंहटाएंबेटियों के प्रति हमारा नजरिया बदला है परन्तु कुछ समाज एवं राज्य में यह समस्या बरकरार है. सोचने को मजबूर कराती आलेख .
जवाब देंहटाएंघर सजा रहता है बेटीयों से .... हरियाणा की खबर विचलित करने वाली है .... कल्पना नहीं की जा सकती बिन बेटि के घर की .... सभी को रक्षाबन्धन पर शुभकामनाएँ
जवाब देंहटाएंरक्षाबंधन के त्यौहार पर एक अच्छी सीख देता लेख.... आभार
जवाब देंहटाएंhttp://savanxxx.blogspot.in
सच कहा है आपने. बेटियां घर की रौनक होती है. मेरी ब्लाग पर आपका स्वागत है.
जवाब देंहटाएंबेटियों के बिना त्यौहार क्या सच कहा है आपने
जवाब देंहटाएंबिल्कुल ठीक कहा। बेटियों से ही त्यौहार हैं। इसे कुछ यूं भी कहा जा सकता है कि महिलाओं की वजह से त्यौहार है और धर्म और धार्मिक गतिविधियां।
जवाब देंहटाएंबिल्कुल ठीक कहा। बेटियों से ही त्यौहार हैं। इसे कुछ यूं भी कहा जा सकता है कि महिलाओं की वजह से त्यौहार है और धर्म और धार्मिक गतिविधियां।
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