शुक्रवार, 6 जून 2014

सुनहरा लॉकेट.....


जून की तपती उमस भरी शाम उसपर बिजली का गुल होना बैचेनी बढ़ा रहा था लेकिन असली व्याकुलता तो उसे जेब का खाली होना दे रहा था।  कल उसकी लाड़ली बहन का जन्मदिन जो था।  कितना दुःख देगी यह बेरोजगारी भी और कब तक? इसी उधेड़ बुन में कब वह सुनसान सड़क पर पहुँच गया उसे पता ही ना चला.

घुप्प अँधेरे में अचानक किसी मासूम का उससे टकराना और फिर जाग उठा उसके भीतर का शैतान।  मासूम की विनती गिड़गिड़ाहट भी उसमे इंसानियत ना जगा सकी।

चलते - चलते उसका हाथ उस असहाय के गले में पड़ी चैन और लॉकेट पर पड़ा , जिसे तुरंत खींचकर साथ ले आया ।   

घर के सामने इकट्ठी भीड़ को देखकर अनजानी शंका से काँप उठा था वह. छोटी बहन भागती हुई बाहर आई और भैया - भैया  कहते हुए उससे लिपट गई।

बहन के फटे कपडे और शरीर पर खरोंचे देख उसे समझते देर नही लगी , तभी उसके कानों में गूंजने लगी वही आवाज़  .... " भैया छोड़ दो मुझे मैं तुम्हारी छोटी बहन जैसी हूँ"

और फिर उसका ध्यान अपनी बंद मुट्ठी पर गया जिसमे वह ले आया था अपनी प्यारी बहन के लिए एक कीमती उपहार जिसके लॉकेट में  सुनहरे अक्षरों में खुदा था उसकी अपनी लाड़ली बहन का नाम ....!

17 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना शनिवार 07 जून 2014 को लिंक की जाएगी...............
    http://nayi-purani-halchal.blogspot.in आप भी आइएगा ....धन्यवाद!

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  2. जीवन में कई बार विवशताएँ बहुत कुछ करवा देती है .....!!!

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  3. ओह बहुत ही मार्मिक एवं सुन्दर कहानी ..

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  4. :-(

    मर्मस्पर्शी!!

    सस्नेह
    अनु

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  5. पात्र के लिए भी शिक्षा है और हमारे लिए भी इस पोस्ट में.

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  6. सरल शब्दों में कही गई गहरी बात, अंधेरा ही समस्त कलूषों की जड़ है, चाहे वह सांसारिक हो, दैहिक हो या भौतिक हो। इसीलिए वेदों ने कहा है - तमसो मा ज्योतिर्गमय। अंधकार से प्रकाश की ओर चलो। जिस दिन मनुष्यों के हृदय से तम एवं मन से कलूष दूर हो जाएगें उस दिन संसार में स्वर्णिम युग का सुत्रपात हो जाएगा। आभार

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  7. ओह .... दिल को हिला गयी .... गूंजती रही बहुत देर तक मन में ....

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  8. उफ्फ...बहुत नार्मिक लघु कथा...

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  9. उफ्फ्फ्फ़ हैवानियत अपनों को भी एक दिन चपेट में ले लेती है |

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  10. बहुत सुन्दर संक्षिप्त लेकिन पूर्ण और सटीक

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