भरोसे के छल में लिपटे
जितने तीर थे
वक़्त के तरकश में
सारे के सारे
छोड़े जा चुके
वज़ूद की पीठ पर
छलनी हो चुके
तार-तार हो चुके
भोले-भाले वज़ूद को
इतनी आदत सी हो गई है
इन छली तीरों की
यदि दर्द ना मिले
तो दर्द होता है
ऐसा लगता है
जैसे ये जख्म नहीं रहे
दवा हो गए हों...
जैसे ये जख्म नहीं रहे
जवाब देंहटाएंदवा हो गए हों...ऐसा भी हो जाता है कभी - कभी
भावमय करते शब्द
वक़्त के तरकश में भरोसे के छल से लिपटे जितने तीर थे सब छोड़े जा चुके हैं।
जवाब देंहटाएंअब जिन्दगी की खुशियों में दर्द नही मिलते तो लगता है जिन्दगी कुछ नहीं है
भाव पूर्ण सार्थक पोस्ट !
जवाब देंहटाएंमर्मस्पर्शी.... दर्द स्वयं दवा हो जाता है समय के साथ
जवाब देंहटाएंवक्त के साथ मिलते दर्द कि ऐसी आदत हो जाती है
जवाब देंहटाएंकि दर्द फिर दर्द नहीं लगता..
भावपूर्ण उत्कृष्ठ रचना...
दर्द न मिले तो दर्द होता है ………… वाह ! बहुत खूब |
जवाब देंहटाएंक्या कहना ..जब वे दवा ही हो गये...
जवाब देंहटाएंyes no pain no gain
जवाब देंहटाएंबहुत उम्दा भावपूर्ण प्रस्तुति...बहुत बहुत बधाई...
जवाब देंहटाएंनयी पोस्ट@ग़ज़ल-जा रहा है जिधर बेखबर आदमी