यह सोचे बगैर कि
जब कोई सवाल करेगा
निरुत्तर हो जाउंगी
लिख लेती हूं तुम्हारी यादों को
रख लेती हूं संदूक में तह लगा
रेशमी अहसासों को
कि वक़्त की बुरी हवा न लगे कभी
सहेज ली है एक याद आज
इत्र की खूबसूरत सी शीशी में
कि जब भी चाहूँ
तुम बिखर जाओ मेरे जीवन में
खुशबू की तरह
घुल जाओ मेरी हर सांस के साथ
गमक उठे
मन प्राण आत्मा
रोम-रोम पर छाई मधुर गंध
सांसों में घुल जाए
बन जाए
हरियाली जीवन की
अमर हो जाये प्रीत
गगन - धरा सी
धरातल पर.......
रोम रोम को समर्पित रचना
जवाब देंहटाएंअहा!!
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर...महके एहसास...
सस्नेह
अनु
दिल में उतरती अति सुन्दर
जवाब देंहटाएंप्रभावी रचना...
:-)
सुंदर रचना |
जवाब देंहटाएंप्रभावी रचना, बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंभावपूर्ण सुंदर रचना ....
जवाब देंहटाएंयादों को लेकर तो अनेक कवितायें है परन्तु आपकी कविता में थोडा अधिक साहितिक मिठास है ..साधुवाद
जवाब देंहटाएंसिमटती यादे
जवाब देंहटाएंअमर हो जाये प्रीत
जवाब देंहटाएंगगन - धरा सी
धरातल पर...............कितनी सुन्दर संवेदनशील बात कही है।
यादों को मन के गहरे ही कहीं रखा जाता है ... फिर मन ही मन गुनगुनाया जाता है ...
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना ...
यादें मन को झकझोर के रखने वाला खुबसूरत यन्त्र हे जिसे आपने बखूबी से अभिव्यक्त किया हे मर्मस्पर्शी कविता
जवाब देंहटाएंवाह ! यादों को सहेजकर रखने कि प्रवृत्ति.... सुन्दर |
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