गुरुवार, 7 नवंबर 2013

यादें हर सांस में...


यह सोचे बगैर कि
जब कोई सवाल करेगा
निरुत्तर हो जाउंगी
लिख लेती हूं तुम्हारी यादों को
रख लेती हूं संदूक में तह लगा
रेशमी अहसासों को
कि वक़्त की बुरी हवा न लगे कभी
सहेज ली है एक याद आज
इत्र की खूबसूरत सी शीशी में
कि जब भी चाहूँ
तुम बिखर जाओ मेरे जीवन में
खुशबू की तरह
घुल जाओ मेरी हर सांस के साथ
गमक उठे
मन प्राण आत्मा
रोम-रोम पर छाई मधुर गंध
सांसों में घुल जाए
बन जाए 
हरियाली जीवन की
अमर हो जाये प्रीत
गगन - धरा सी 
धरातल पर.......

12 टिप्‍पणियां:

  1. अहा!!
    बहुत सुन्दर...महके एहसास...

    सस्नेह
    अनु

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  2. दिल में उतरती अति सुन्दर
    प्रभावी रचना...
    :-)

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  3. प्रभावी रचना, बहुत सुन्दर

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  4. यादों को लेकर तो अनेक कवितायें है परन्तु आपकी कविता में थोडा अधिक साहितिक मिठास है ..साधुवाद

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  5. अमर हो जाये प्रीत
    गगन - धरा सी
    धरातल पर...............कितनी सुन्‍दर संवेदनशील बात कही है।

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  6. यादों को मन के गहरे ही कहीं रखा जाता है ... फिर मन ही मन गुनगुनाया जाता है ...
    सुन्दर रचना ...

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  7. यादें मन को झकझोर के रखने वाला खुबसूरत यन्त्र हे जिसे आपने बखूबी से अभिव्यक्त किया हे मर्मस्पर्शी कविता

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  8. वाह ! यादों को सहेजकर रखने कि प्रवृत्ति.... सुन्दर |

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