रविवार, 19 मई 2013

लघु कथाएं... संध्या शर्मा

लघु कथा-1

दो निवाले सुख के
उन्हें रिटायर हुए एक बरस भी न हुआ था कि पत्नी साथ छोड़ गई, जमा पूंजी का कुछ हिस्सा उसके इलाज़ में और बाकी बेटों ने मजबूरियां, तकलीफें बताकर हथिया ली. आसरे के लिए रह गए तो सिर्फ पेंशन के गिने चुने पैसे. आजकल बहुओं को उन्हें दो वक़्त की रोटी खिलाना भी भारी पड़ने लगा है, हालत के मारे क्या करते आखिर उन्होंने खोज लिया "दोन घास सुखाचे" का मार्ग अर्थात सुख के दो निवाले पाने का स्थान एक छोटा सा होटल जो उनकी हैसियत के हिसाब से पेट भरने के लिए काफी है . कैसी विडम्बना है एक समय था जब उनकी आवभगत में पूरा परिवार लगा रहता था।
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लघु कथा - 2


दो बोल प्रेम के
बहु के पीछे-पीछे घूमते सुभद्रा कई दिनों से देख रही थी, वह धीरे-धीरे बहु को न जाने क्या कहती. कुछ इस तरह जैसे कोई छोटी बच्ची अपनी माँ से कुछ चाहती हो. आखिर क्या बात हो सकती है? सबकुछ तो है इनके पास, पति की पेंशन मिलती है, वक़्त पर खाना, सोना सारी सुविधाएँ हैं. आखिरी एक दिन मैंने सुन ली उनकी वह बात.। कह रही थी "मैं बहुत अकेली हूँ, ऐसा लगता है मुझे कुछ हो जायेगा, लेकिन जब तू मुझसे बात कर लेती है न तो मेरी सारी तकलीफ दूर हो जाती है, बहुत ख़ुशी मिलती है मुझे... तू माझ्या शी बोल न ग... बोल न...फ़क्त "दोन बोल प्रेमाचे"
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23 टिप्‍पणियां:

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  2. वर्तमान परिस्थितियों का सही अंकन ....समाज की सच्चाई को बखूबी उकेरा है आपने ....दोनों लघु हैं, लेकिन उत्कृष्ट भी ...!!!

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  3. हैप्पी बर्थ डे है आज
    मेरे पिता जी का
    उत्सवी माहौल है घर में
    घर के बाहर /चायनीज बल्ब सज गए है
    बैलून और झालर से उनका कमरा सजा है//

    जिसमे अमूमन शायद ही कोई जाता है
    70 के है मेरे पिता जी
    पोतों ने शुरू की है उनके जन्म दिन मनाने की परम्परा
    उनकी सेवा निवृति के बाद//

    बड़े प्यार से पोछती है
    धुल से सनी
    उनकी ज़वानी की फोटो/मेरी पत्नी
    जैसे पोछी जाती है
    बापू की मूर्ति चौक-चौराहों पर 2 अक्तूबर को //

    आज उनका बचत खाता खाली हो गया है
    उनके पोते ने ख़रीदा है टैबलेट /
    और बहु ने हीरे की अंगूठी //
    पिता जी कहते है
    ये सब बच्चो और तुम्हारे लिए ही तो है //

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  4. मन को छूती कथाएं....
    समाज का सच कहतीं....

    सस्नेह
    अनु

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  5. निशब्द करती रचना... हो रहे समाज का चलचित्र...

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  6. दोनों कथाएं सत्य बयाँ करती हैं ... वर्तमान और भविष्य भी ऐसा ही होने वाला है ..
    बुजुर्गों को चाहिए अपना भी सोचना ...

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  7. बहुत सुंदर..निशब्द करती सुंदर रचना...

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  8. आज तुम्‍हारी कल हमारी ..
    समय पर सबकी आएगी बारी ..
    काश लोगों में इतनी समझ होती !!

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  9. YAHI HO RAHA HAI ADHIKTAR GHARON MEN .....INSAANIYAT KO TO JAISE BHOOL HI GAYE HAIN LOG .....SUNDAR RACHNA ..

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  10. अपने में रोकती हुई कथाएं..

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  11. बेहतरीन भावपूर्ण लघुकथाए.

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  12. भाव भरी किन्तु मन को खिन्न करने वाली दुखद परिस्थिति को दर्शाती हम बुढ़ापे में आश्रय देना क्यों भूल जाते

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  13. जीवन के दुखद और मार्मिक सत्य को उजागर करती
    लघु कथा
    बहुत खूब
    बधाई



    आग्रह है पढ़ें "बूंद-"
    http://jyoti-khare.blogspot.in


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  14. जीवन का एक सच यह भी है ....
    मन को छूती पोस्‍ट

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  15. Apne aas paas yahi hote dekh rahee hun...Meri ek Marathi katha,"Deva daya tujhee kee.."isee wishaype adharit hai....jiska Hindi tarjuma bhee maine kiya hai.

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  16. Pahli baar aayee hun aapke blogpe,aur man jeet liya aapne!

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  17. दोनों ही लघु कथा मर्मस्पर्शी । समाज के सच को उजागर कर रही हैं ।

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  18. it's a real face of westernization and modern life of new generation , which are very worrisome .Congrate

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  19. उफ्फ्फ........बहुत मार्मिकता है इन छोटे किन्तु सटीक शब्दों में......हैट्स ऑफ इसके लिए।

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  20. bahut hee marmik kathaen - main khud bhee aisee sthiti men hoon.
    badhai.

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