सोमवार, 18 अप्रैल 2011

तुम्हारे बारे में.... संध्या शर्मा


तुम्हारी रचना से जानती हूँ
मैं, तुम्हारे बारे में
तुम क्या सोचते हो ?
तुम क्या चाहते हो ?
किस बात से आहत होते हो
 और किस बात से खुश ...!

कुछ भी नहीं जानती
तुम्हारे बारे में
तुम्हारी भाषा - तुम्हारा वेश
तुम्हारे, अपने - पराये

फिर भी बहुत  कुछ जानती हूँ
तुम्हारे बारे में
तुम्हारे पास ह्रदय है
पवित्र कोमल
जिसमे सजते हैं सपने
उठते हैं सवाल
जो चाहते  है बदलाव
देश और समाज में

कहती है सब कुछ मुझसे
तुम्हारी ये रचना
चाहत है तुम्हारी
इस दुनिया में
बस नेक इन्सान बनकर जीना ..!

22 टिप्‍पणियां:

  1. आदरणीय संध्या जी
    नमस्कार !
    कुछ भी नहीं जानती
    तुम्हारे बारे में
    तुम्हारी भाषा - तुम्हारा वेश
    तुम्हारे, अपने - पराये
    एक सम्पूर्ण पोस्ट और रचना!
    ....यही विशे्षता तो आपकी अलग से पहचान बनाती है!

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  2. संध्या जी
    कहती है सब कुछ मुझसे
    तुम्हारी ये रचना
    .....एक और सुन्दर कविता आपकी कलम से !

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  3. संध्या जी ,

    बहुत सही लिखा आपने .. हम सबकी इतनी आपसी पहचान ही बहुत मायने रखती है |

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  4. आपको एवं आपके परिवार को भगवान हनुमान जयंती की हार्दिक बधाई और शुभकामनाएँ।

    अंत में :-

    श्री राम जय राम जय राम

    हारे राम हारे राम हारे राम

    हनुमान जी की तरह जप्ते जाओ

    अपनी सारी समस्या दूर करते जाओ

    !! शुभ हनुमान जयंती !!

    आप भी सादर आमंत्रित हैं,

    भगवान हनुमान जयंती पर आपको हार्दिक शुभकामनाएँ

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  5. अच्छी प्रस्तुति ..लेकिन कभी कभी रचना कुछ और कहती है और इंसान किसी और प्रवृति का होता है

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  6. क्या बात है संध्या जी.नेक इंसान बनना ही तो फितरत होनी चाहिये हम सभी की .
    'अपने लिए, जिए तो क्या जिए,अ दिल तू जी ज़माने के लिए'
    सुन्दर प्रस्तुति के लिए आभार.

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  7. अंतर से प्रस्फुटित हुई गहन भावनाओं में डूबी सुन्दर अभिव्यक्ति !
    आभार !

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  8. किसी की रचनात्मकता से उसके विषय में जानना बहुत आसन होता है और जो व्यक्ति सच में खुद को रचना में शामिल करके लिखता है वही सशक्त रचना करने में सफल होता है ...आपने बहुत सुंदर तरीके से प्रकाश डाला है ....आपका आभार

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  9. चाहत है तुम्हारी इस दुनिया में
    बस नेक इन्सान बनकर जीना ..!

    बहुत सुन्दर भावाभिव्यक्ति...

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  10. बहुत सुन्दर और भावप्रणव रचना!
    भगवान हनुमान जयंती पर आपको हार्दिक शुभकामनाएँ!

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  11. चाहत है तुम्हारी इस दुनिया में
    बस नेक इन्सान बनकर जीना

    कितनी सुंदर पंक्तियाँ कहीं आपने.....बहुत बढ़िया

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  12. बहुत खूब, हार्दिक शुभकामनायें आपको !

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  13. कहती है सब कुछ मुझसे
    तुम्हारी ये रचना
    चाहत है तुम्हारी
    इस दुनिया में
    बस नेक इन्सान बनकर जीना ..!

    इंसान का नेक बने रहना ही सबसे बड़ी बात है. बहुत सुंदर रचना सुंदर भावनाएं. बधाई.

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  14. हमारे जैसे ब्लॉगर की दिल की बात कह दी आपने...
    खुबसूरत रचना! दिल से आभार आपका....

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  15. जी बहुत सुंदर रचना। अजनवी को जानने के लिए भला इससे बेहतर रास्ता क्या हो सकता है।

    तुम्हारी रचना से जानती हूँ
    मैं, तुम्हारे बारे में

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  16. संध्या जी,आपकी ये रचना लाजवाब है.इसमें रहस्यवाद कि खुशबू भी है और दृश्य से अदृश्य के संबंधों कि व्याख्या भी.पढ़कर बहुत अच्छा लगा.

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  17. बंधुवर!
    "डंडा" संत स्वभाव की, यही मुख्य पहचान।
    बीज सदा परमार्थ के, करते रहते दान॥
    ===========================
    आपकी प्रभावोत्पादक रचना दूसरों के लिए मार्ग-दर्शक
    सिद्ध होंगी। साधुवाद!
    सद्भावी -डॉ० डंडा लखनवी

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  18. तुम्हारी रचना से जानती हूँ
    मैं, तुम्हारे बारे में
    तुम क्या सोचते हो ?
    तुम क्या चाहते हो ?
    किस बात से आहत होते हो
    और किस बात से खुश ...!

    बहुत खूब,संध्या जी.
    कभी कभी बहुत गहरा असर डाल जाती हैं किसी की कलम हम पर.
    खूबसूरत जज़्बात पिरोये हैं शब्दों में आपने.

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  19. Kisi ki rachna padhkar uske bare me kuch to jan hi sakte hain hum...pyari rachna. . . . . . . . . . Jai hind jai bharat

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