बुधवार, 16 जुलाई 2025

एक ख़त बीते लम्हों के नाम... संध्या शर्मा

एक ख़त लिखना चाहती हूँ मैं,  

उन गुजरे पलों के नाम,  

जो छू गए थे मन को कभी

और खो थे वक़्त के अंधेरों में।


काग़ज़ पे उतर आएँगे,

कुछ धुंधले से चेहरे,

हँसती आँखें, अधूरे ख़्वाब

और वो बिखरी चुप्पियाँ।  


हर शब्द होगा एक दर्द,

हर पंक्ति एक सिसकी,

मगर ये ख़त पढ़ेगा कौन?  

वक़्त तो बहरा है...!


भेजूँगी नहीं इसे कहीं मैं,

रख दूँगी दिल की किसी कोठरी में,

जहाँ गूँजती रहेगी हर पंक्ति

एक अनसुनी कहानी की तरह।  

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