शनिवार, 31 अगस्त 2019

मेरी नज़्म... संध्या शर्मा

 ख़यालों के पंख लगाकर
ख़्वाबों की उड़ान भरकर
कितनी भी दूर क्यों न चली जाए
लेकिन लौट आती है "मेरी नज़्म"
उतर आती है ज़मी पर
मेरे साथ नंगे पाँव घूमती है
पत्ता-पत्ता, डाल-डाल, बूटा -बूटा
इसलिए तो तरोताज़ा रहती है
जब कभी यादों के सात समंदर पार करके
थककर निढाल हो जाती है
तो बैठ जाती हैं मेरे साथ
साहिल की ठंडी रेत पर
जाने क्या लिखती - मिटाती
बड़ी शिद्द्त और ख़ामोशी से
देखती रहती है.....
ख्वाहिशों की तरह
लहरों का आना
और पत्थरों से चोट खाकर
बार-बार लौट जाना...

8 टिप्‍पणियां:


  1. जय मां हाटेशवरी.......
    आप को बताते हुए हर्ष हो रहा है......
    आप की इस रचना का लिंक भी......
    01/09/2019 रविवार को......
    पांच लिंकों का आनंद ब्लौग पर.....
    शामिल किया गया है.....
    आप भी इस हलचल में......
    सादर आमंत्रित है......

    अधिक जानकारी के लिये ब्लौग का लिंक:
    http s://www.halchalwith5links.blogspot.com
    धन्यवाद

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  2. लौटती रहेगी हमेशा नज़्म तुम्हारे ख्यालों में, क्योंकि वह दूर होती भी नहीं, किसी खामोश लम्हें में अपने होने का एहसास भर देती है

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  3. लौटती रहेगी नज्म शब्द बनकर ....

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  4. जी नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (01-09-2019) को " जी डी पी और पी पी पी में कितने पी बस गिने " (चर्चा अंक- 3445) पर भी होगी।


    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    आप भी सादर आमंत्रित है
    ….
    अनीता सैनी

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  5. वाह ....बहुत सुंदर नज़्म का लौटना सुखद अनुभूति है
    ..

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  6. बहुत खूब ल‍िखा है आपने ... आपकी ही नज़्म का आपके साथ चलना..बहना...बहुत खूब

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  7. आपको तलाशते हुए हम पहुँच ही गए आखिरकार । अब आते रहेंगे ।

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