कब का रिश्ता है ?
क्यों लगती हो मुझे
इतनी अपनी सी ?
क्यों बुलाती हो मुझे
इतने प्यार से ?
तुम्हारा स्नेहिल
मौन आमंत्रण
अनायास ही
ले जाता हैं मुझे
युगों के पार
विकल है मन
मेरे अंतर में
जागती कविता
ह्रदय गीतमय
स्पंदित गुंजित
धारा बन बहता
यूँ मिलती हो
जैसे तुम मेरी
बिछ्ड़ी सखियाँ
ओ शुक सारिका
कहो आंजना
हे शाल भंजिका
प्यारी रमणिका
मुग्ध करती मुग्धा
कहो न अभिसारिका....?
शायद इसी लिए तो कहते हैं रिश्ते इस दुनिया में नहीं किसी और दुनिया में बनते हैं ... तभी तो गहरा और कितने जन्मों का होता है रिश्ता ...
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर !
जवाब देंहटाएंकुछ अनाम रिश्तों को परिभाषित नहीं किया जा सकता .
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