सरोकार छूट जाऐं
बंधन टूट जाऐं
रस्ते बदल जाते हैं
रिश्ते रूठ जाते हैं
जैसे......!
दो बिन्दुओं का योग
सरल रेखा बनता है
लेकिन एक ही बिंदु से
निकलकर भी
मुंह मोड़कर
एक दूजे से
दो दूर जाती हुई
सरल रेखाओं के बीच
विस्तृत होता जाता है
एक अनंत विस्तार
जो रच ही देता है
एक न एक दिन
ब्रह्मांड दूरियों का….!
बंधन टूट जाऐं
रस्ते बदल जाते हैं
रिश्ते रूठ जाते हैं
जैसे......!
दो बिन्दुओं का योग
सरल रेखा बनता है
लेकिन एक ही बिंदु से
निकलकर भी
मुंह मोड़कर
एक दूजे से
दो दूर जाती हुई
सरल रेखाओं के बीच
विस्तृत होता जाता है
एक अनंत विस्तार
जो रच ही देता है
एक न एक दिन
ब्रह्मांड दूरियों का….!
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, " "जिन्दगी जिन्दा-दिली को जान ऐ रोशन" - ब्लॉग बुलेटिन " , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंसुंदर प्रस्तुति..
जवाब देंहटाएंसच कहा है सरल रहना ही उचित है ... दूरियां ठीक नहीं ....
जवाब देंहटाएंविस्तार का विराम कहाँ ?
जवाब देंहटाएं