शनिवार, 24 जनवरी 2015

हे री सखी बसंत है आयो....


हे री सखी बसंत है आयो
झूमे लीम लीम की डारी, बरगद है हरियायो
गेंदा संग चमेली फ़ूली, रंग चहूं दिसि छायो।
हे री सखी बसंत है आयो।

हिय जली आग लगन की, जब उन बिसरायो
काग मुंडेर पे बैठ के बोलो, पिय संदेशा लायो।
हे री सखी बसंत है आयो।

मोरे आंगन की खिलगी क्यारी न्यारी प्यारी
जब परदेश की खबरिया कारो कागा लायो
हे री सखी बसंत है आयो।

नार - कचनार हुलसी, हुलस- हुलस सतायो
दूर देश में हमार बलम, यहाँ बसंत तू आयो
हे री सखी बसंत है आयो।

चलो बांध लो गांठ प्रीत की आम बौर गदरायो
बाट बटोही की देखे पलास बसंत अगन लगायो
हे री सखी बसंत है आयो।  

8 टिप्‍पणियां:

  1. बसंत बिरहा के साथ प्रकृति सौंदर्य का देशज भाषा में सुंदर चित्रण। आपको बसंत पंचमी की हार्दिक शुभकामनाएँ। देवी सुरसती सदैव आपके लेखन को समृद्ध करे।

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति। वसंत पंचमी की हार्दिक शुभकामनाएं।

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत ही सुन्दर वासंती रचना ! मन को महका गयी ! वसन्त की आप सभी को हार्दिक शुभकामनायें !

    जवाब देंहटाएं
  4. सुन्‍दर गीत, सुन्‍दर चित्र, सुन्‍दर वसंत।

    जवाब देंहटाएं
  5. श्रृंगार युक्त खूबसूरत रचना.....वसंत पंचमी की आप सभी को हार्दिक शुभकामनायें !

    जवाब देंहटाएं
  6. प्राकृति के श्रृंगार को शब्दों में बाँधा है ...
    बसंत की हार्दिक शुभकामनायें ...

    जवाब देंहटाएं