संक्रांति के एक दिन पहले
खूब सारा दूध कंडे की आग में
गुलाबी गाढ़ा होने तक पकाती,
फिर मिट्टी के बर्तन में उसी दूध से
मलाईदार दही जमाती थी माँ
संक्राति के दिन सबको
चूड़े (पोहे), गुड के साथ खिलाती
तब ना जाने क्यों मुझे
खाना अच्छा नही लगता था
शायद खूब सारा देखकर
अघा जाते होंगे हम
और लड्डुओं की तो ना ही पूछो
सफ़ेद तिल, काली तिल, मूंगफली
मुरमुरे, आटे में बेसन के सेव डालकर
और जाने कितने तरह के बनाती
चूड़ी, बिंदिया, महावर, बिछुए
सुहागिनों को उपहार देती
कोई भी कमी ना रखती
किसी भी बात में
ऊपर से कोई रोक - टोक न करती
खिलाना हो या लेना - देना
इतनी खुले मन और विचारों वाली माँ
एक जगह बड़ी कंजूसी करती
थोड़ा सा सिन्दूर और दो-दो चूड़ियाँ
बस यही सिंगार थे उसके
एक दिन पूछ बैठी मैं कारण
तो समझाते हुए बोली
"देख! सिन्दूर सहेजती हूँ मैं
थोड़ा-थोड़ा सा खर्च करती हूँ
ताकि अपनी पूरी उम्र पा सकूँ
यही सीख मुझे मेरी माँ से मिली
और मैं तुझे दे रही हूँ "
सचमुच सर्दी की गुनगुनी सी धूप सी माँ
अपने घर परिवार आँगन को सजाकर
सिंदूरी चूनर ओढ़े साँझ की तरह
लाल बिंदिया माथे पर सजाए
संतोष भरी मुस्कान के साथ
चली तो गई दूर हमसे
लेकिन १५ वर्ष होने को हैं
आज भी सहेजे हुए है
हम सबके लिए अपने सुहाग को
और साथ है हमारे पापा के रूप में ....
उत्तरायण का सूर्य आप सभी के जीवन में नव ऊर्जा एवं उल्लास भर दे। आप सभी को मकर संक्रांति, खिचड़ी, बिहू, पोंगल व लोहड़ी की बधाई...
खूब सारा दूध कंडे की आग में
गुलाबी गाढ़ा होने तक पकाती,
फिर मिट्टी के बर्तन में उसी दूध से
मलाईदार दही जमाती थी माँ
संक्राति के दिन सबको
चूड़े (पोहे), गुड के साथ खिलाती
तब ना जाने क्यों मुझे
खाना अच्छा नही लगता था
शायद खूब सारा देखकर
अघा जाते होंगे हम
और लड्डुओं की तो ना ही पूछो
सफ़ेद तिल, काली तिल, मूंगफली
मुरमुरे, आटे में बेसन के सेव डालकर
और जाने कितने तरह के बनाती
चूड़ी, बिंदिया, महावर, बिछुए
सुहागिनों को उपहार देती
कोई भी कमी ना रखती
किसी भी बात में
ऊपर से कोई रोक - टोक न करती
खिलाना हो या लेना - देना
इतनी खुले मन और विचारों वाली माँ
एक जगह बड़ी कंजूसी करती
थोड़ा सा सिन्दूर और दो-दो चूड़ियाँ
बस यही सिंगार थे उसके
एक दिन पूछ बैठी मैं कारण
तो समझाते हुए बोली
"देख! सिन्दूर सहेजती हूँ मैं
थोड़ा-थोड़ा सा खर्च करती हूँ
ताकि अपनी पूरी उम्र पा सकूँ
यही सीख मुझे मेरी माँ से मिली
और मैं तुझे दे रही हूँ "
सचमुच सर्दी की गुनगुनी सी धूप सी माँ
अपने घर परिवार आँगन को सजाकर
सिंदूरी चूनर ओढ़े साँझ की तरह
लाल बिंदिया माथे पर सजाए
संतोष भरी मुस्कान के साथ
चली तो गई दूर हमसे
लेकिन १५ वर्ष होने को हैं
आज भी सहेजे हुए है
हम सबके लिए अपने सुहाग को
और साथ है हमारे पापा के रूप में ....
उत्तरायण का सूर्य आप सभी के जीवन में नव ऊर्जा एवं उल्लास भर दे। आप सभी को मकर संक्रांति, खिचड़ी, बिहू, पोंगल व लोहड़ी की बधाई...
bahut badhiya .....bachpan yaad aaya aur nayan bhar aaye ...
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रस्तुति का लिंक 15-01-2015 को चर्चा मंच पर दोगलापन सबसे बुरा है ( चर्चा - 1859 ) में दिया गया है ।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
Bahut Sunder....Shubhkamnayen
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर सामयिक प्रस्तुति ..
जवाब देंहटाएंआपको भी मकर सक्रांति की हार्दिक शुभकामनायें!
UMDA .... YAADO KE JHAROKHE SE BHARTIY SANSKAAR OR MAANYTAYO KI SARTHAKTA KO SUNDRA ROOP ME PRASTUT KIYA AAPNE MAKAR SANKRANTI KI HAARDIK BADHAYI :)
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर ।
जवाब देंहटाएंमकर संक्रान्ति की शुभकामनायें
माँ एक आशीर्वाद के रूप में सदा साथ रहती है... सुंदर रचना !
जवाब देंहटाएंसंक्रांति के एक दिन पहले
जवाब देंहटाएंखूब सारा दूध कंडे की आग में
गुलाबी गाढ़ा होने तक पकाती,
फिर मिट्टी के बर्तन में उसी दूध से
वाह दी वाह एक ही रचना में इतना कुछ कह दिया सचमुच पढ़कर आनंद आ गया मन और दिल दोनों को छू गयी.....!!
सुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंमहसूस करो तो हर पल महकती है माँ की खूशबू ..महकती हुई रचना के लिए बधाई..
जवाब देंहटाएंकितना मनोरम - मां के न पास होने की उदासी तो हैं,पर हर पल उसके एहसासों मे डुबोता यह चित्रण उससे दूर नहीं होने देता -आभार !
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