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अनंत सागर के
खारे पानी में
अकेली खड़ी वह
हर क्षण धीरे-धीरे
घुलती जा रही है
सांसें रुकने को हैं,
जैसे-जैसे डूबती है
सागर की लहरों में
विश्वास और ढृढ़ होता
गहरे खींचता है उसे
अभिमानी, उद्दंड
पर उसकी भी जिद्द है
जीत कर ही मानेगी
सागर की विशालता
जितना डराती हैं
उतना ही उसकी ओर
खिंची चली जाती है
उद्दात लहरें
आवाज़ देती हैं उसे
हर बार बहा ले जाती हैं
बहुत कुछ उसका
सब लाना है वापस उसे
वह अच्छी तरह जानती है
यह प्रलय नही है
सिर्फ सम्मोहन है
कुछ-कुछ मृत्यु जैसा
खारे पानी में मिलकर गंगा का जल भी खारा हो जाता है।
जवाब देंहटाएंगहन अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंइस सम्मोहन से जीतने की क्षमता है उसमें ... जो खो गया उसे पाना जरूरी है ..
जवाब देंहटाएंगहरे भाव लिए रचना ...
सुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंमोहक है यह सम्मोहन...जिसके पार ही जीवन है
जवाब देंहटाएंकौन बाहर आना चाहेगा इस सम्मोहन से...लाज़वाब गहन अभिव्यक्ति...
जवाब देंहटाएंजीतने की जिद का सुन्दर सम्मोहन ..अति सुन्दर..
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति। मेरे नए पोस्ट पर आपका इंतजार रहेगा। धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंजीतने की जिद का सुन्दर सम्मोहन....गहन अभिव्यक्ति
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