गुरुवार, 4 दिसंबर 2014

बोलने लगते हैं चेहरे ....

...
मुखौटों के पीछे 
बरसो से मौन 
सहमे से बेजान
सिर्फ ढलते ही हैं 
जिनके सूरज    
एक ना एक दिन
झूठ से तंग आकर 
सच की सांस पाकर
खिल उठते हैं 
सुबह की धूप से   
और फिर हौले से 
बोलने लगते हैं चेहरे ...

5 टिप्‍पणियां:

  1. इन चेहरों की मुस्कराहट देखने की और इनके बोल सुनने की हमें भी उत्सुकता से प्रतीक्षा है संध्या जी ! बहुत सुन्दर रचना !

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  2. और कितना सुखद है उनको सुनना...
    सुन्दर रचना |

    सस्नेह
    अनुलता

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  3. खिल उठते हैं
    सुबह की धूप से
    और फिर हौले से
    बोलने लगते हैं चेहरे ..

    वाह क्या बात है अच्छी लगी रचना बधाई

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  4. बहुत खूब ... बोलते चेहरे मन के भाव बोल देते है ...

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