गुरुवार, 2 जनवरी 2014

मरीचिका...

हर पल कल की आशा
हर पल से मुग्धता
एक डोर बांधे रखती है
जीवन को साँसों से
कुछ रहस्य का मोह
ज्ञात का सम्मोह
अज्ञात को जानने का मोह
और भी गहन हो जाता है
संसार में मेरा होना
हम सबका होना
संबंध पुरातन सनातन का
रहस्य उस शक्तिमान का
जो हर बार बच जाता है
उजागर होने से
प्रतीत होता है जैसे
गुहा के भीतर गुहा है
और उसके भीतर भी गुहा
जारी रहता है पल - छिन
आना और जाना 
फिर भी रह जाता है
अनबूझा ---- अनजाना ---------

16 टिप्‍पणियां:

  1. गहरी अभिव्यक्ति.....ये प्रश्न ही है ...

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  2. सुंदर अभिव्यक्ति..शुभकामनायें..

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  3. बहुत सुंदर भावपूर्ण प्रस्तुति...!
    नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाए...!
    RECENT POST -: नये साल का पहला दिन.

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  4. गहन भाव लिए सुन्दर रचना ..

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  5. आपकी इस प्रस्तुति को आज की बुलेटिन हिंदी ब्लॉग्गिंग और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।

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  6. सत्य है !
    नया वर्ष २०१४ मंगलमय हो |सुख ,शांति ,स्वास्थ्यकर हो |कल्याणकारी हो |
    नई पोस्ट विचित्र प्रकृति
    नई पोस्ट नया वर्ष !

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  7. सचमुच रेगिस्तान मे खोजता मन जीवन की छाँव

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  8. शायद ये अनबूझा ,अनजाना ही जीवन की ऊर्जा बनता है...
    सुन्दर रचना.

    सस्नेह
    अनु

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  9. उस अनजानी डोर को यूं ही रहने दो

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