सोमवार, 12 अगस्त 2013

मैं स्कूल कैसे जाऊं ???

कल ऐसी बरसात हुई, हर तरफ सिर्फ पानी ही पानी. नदी के किनारे है मेरा घर. घर की छत का कोना तक दिखाई नहीं दे रहा था. मैंने खुद अपनी आँखों से कई आदमी, जानवर सामान सब कुछ बहते देखा. माँ को घर छोड़ने के वक़्त सिसकते देखा. छोटा भाई जो खुद को सँभालने लायक नहीं है. पानी में रास्ता दिखा रहा था. पिताजी ने दादी को पीठ पर लाद लिया और हमने घर छोड़ दिया. रात भर की बारिश ने सब कुछ भिगो दिया, घर की दीवारें, छत की टीन सबकुछ आँखों के आगे बह रहा था. क्या पकड़ें क्या बह जाने दें?? किसीको भी सूझ ही नहीं रहा था. सामान से जीवन कीमती समझ उसे ही बचा लिए .

इस साल पहली बार पिताजी ने ज्वारी के बदले गेहूं खरीदा था. हमारे लिए स्कूल की नयी पोशाक सिलाई थी, हाँ... माँ को एक रेशमी साडी भी दिलाई थी, जिसे माँ ने मौसी की शादी में पहनने के लिए रखी थी, सब कुछ कीचड में मिल गया. गेहूं का एक दाना तक नहीं बचा . घर में सिर्फ कीचड ही दिखाई दे रहा है. ये देखिये मेरी किताबें, बस्ता कैसे हो गए. आप पूछ रहे थे न वहां भीड़ क्यों है? बंशी काका मर गए हैं सांप काटने से, उन्ही को देख रहे हैं लोग. मजदूरी के लिए अपना परिवार छोड़कर आये थे गाँव से. कल रात भोला काका के साथ शहर गए थे खेती का कुछ सामान खरीदने, वापसी में बाढ़ ने घर नहीं पहुँचने दिया दोनों पेड़ पर चढ़ गए लेकिन मौत ने बंशी काका का पीछा नहीं छोड़ा, पेड़ पर सांप ने डंस लिया उन्हें भोला काका ने गमछे से पेड़ से बाँध दिया था उन्हें। रात भर उनकी लाश के साथ रहने के बाद अभी उतारा है उन्हें वहां से. अब क्या होगा उनके परिवार का.

ना जाने कितनी जानें ले ली इस बाढ़ ने. नंदा चाची का का दो दिन का बच्चा उनकी गोद से छूटकर नदी के पानी में समा गया. वो देखिये कैसे पागलों की तरह अपने बच्चे को पानी में खोज रही हैं.  उधर देखो रमा काकी अपनी दो बेटियों के साथ अभी भी नाले के किनारे खडी काका के आने की राह देख रही है, कल शाम विकराल रूप धरे नाले को पार करने के लिए सबने मना किया था काका को, वे नहीं माने बोले "मेरी पत्नी दोनों बेटियों के साथ अकेले कैसे रहेगी इस बाढ़ में" और चले गए उन्हें हमेशा के लिए अकेला करके.

हरेक घर में बारिश ने अलग-अलग तरह से कहर ढाया है. बारिश तो थम गई है,  बाढ़ का पानी उतर गया. लेकिन हमारी आँखों की बारिश अभी भी थमी नहीं है.हम भूखे बेघर. कुछ भी नहीं बचा हमारे पास. आप कहते हैं मैं खूब  पढूं - लिखूं  अपना भविष्य उज्जवल बनाऊं लेकिन पहले यह तो बताइए ... मैं स्कूल कैसे जाऊं ??

21 टिप्‍पणियां:

  1. मार्मिक ..... सच में हालात बड़े दुखद हैं .....

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  2. बाढ़ की विभीषिका का ऐसा मार्मिक वर्णन.. देश के कितने ही हिस्सों में इस वर्ष वर्षा ने ऐसा ही कहर ढाया है

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  3. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
    आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टी का लिंक कल मंगलवार (13-08-2013) को "टोपी रे टोपी तेरा रंग कैसा ..." (चर्चा मंच-अंकः1236) पर भी होगा!
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  4. मुसीबतों के पहाड़ ढोते-ढोते आदमी की आंख का पानी नहीं रुकनेवाला।

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  5. आपकी यह रचना कल मंगलवार (12-08-2013) को ब्लॉग प्रसारण पर लिंक की गई है कृपया पधारें.

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  6. बहुत खराब हालात हैं...
    प्रकृति के हाथों मजबूर हैं.....

    सस्नेह
    अनु

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  7. सवाल तो अपनी जगह मुंह खोले खड़ा है ....
    मैं स्कूल कैसे जाऊं ??
    सटीक!

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  8. कभी कभी प्रकृति मजबूर कर देती है..

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  9. एक वार्षिक शोक लेकर है आता है सावन !

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  10. कई बार इस सवाल से आशना हुआ है बचपन में. सुन्दर प्रस्तुति.

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  11. मार्मिक ... कितना बड़ा सच है की आज भी अधिकाँश समाज हर साल इस त्रासदी से गुज़रता है ... बाड़, सूखा, सर्दी ... इससे भी पार नहीं पा पाए हैं हम ... कैसा तंत्र ...

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  12. marmik abhvyakti .. vigyaan ne kitni bhi tarkki kar li ho par prakriti se haar baar mat hi khata hai .. :(

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  13. ऐसे हालत में कोई जीए कैसे स्कूल तो बहुत बाद में आता है , देश के कई हिस्सों में यह वार्षिक बिमारी है ..

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  14. अतिवृष्टी का कहर और मदद को कोई नही कहां जायें लोग ?
    यथार्थ ।

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  15. प्रकृति के ये प्रकोप युगों से जीवन को संकट में डालते आये हैं. विज्ञान इतना उन्नत हो गया, दूर ग्रहों पर जाने के पहले धरती का जीवन सुरक्षित बनाना अधिक आवश्यक है !

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  16. त्रासदी भयानक होती है,
    बिखर जाते हैं घर परिवार,
    समस्याओं का लग जाता है अम्बार
    जो इनसे जूझ कर विजय पा लेता है
    वही होता है असली सरदार

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  17. त्रासदी को एक विद्यार्थी की आँखों से देखना भला लगा प्रणाम इस सूक्ष्म नज़र को

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