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रविवार, 14 अगस्त 2016

आज़ादी....!



एक बात कहूँ..?
खरीदोगे तो
अपमान करोगे
सड़कों पर फेंकोगे
न खरीदोगे तो
नन्हे मज़दूरों का
साल भर का 
इन्तज़ार व्यर्थ
चलो मान लिया
तुम मना लोगे 
इनके बनाए हुए
झंडे बिना आज़ादी
क्या है कोई हल...?
जो पूरा कर दे इनके
छोटे - छोटे सपने
जो दिला सके इन्हें
भूख और गरीबी से
आज़ादी....!

शनिवार, 15 अगस्त 2015

तस्वीर सच्चे भारत की ...

आज का दिन हमें अमर शहीदों और स्वतंत्रता सेनानियों के संघर्ष व बलिदान की याद दिलाता है। हमें आत्मचिन्तन करने तथा महान देशभक्तों के सपनों एवं लक्ष्यों को प्राप्त करने की प्रतिबद्धता प्रदर्शित करने का अवसर प्रदान करता है।
स्वतंत्रता प्राप्ति के इतने वर्षों बाद भी, न तो हम भाषा की दृष्टि से आजाद हो पाये हैं और न ही व्यवस्थाओं की दृष्टि से । आज आज़ादी के नाम पर हम अंग्रेजी गुलामी में जी रहे हैं, सभी व्यवस्थाओं का स्वदेशीकरण करना होगा, जो दुर्भाग्य से नहीं हुआ, इस आधी अधूरी आजादी के स्थान पर हमें पूरी आजादी लानी होगी।  जब हम अन्याय के खिलाफ आवाज़ उठा सकते हैं , सरकार बदल सकते हैं, तो इस दिशा में भी प्रयास क्यों नही?? 
आप सभी को स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक बधाई व शुभकामनाएं ...जय हिन्द



खेत - खलिहान की संगत में संवर जायेंगे 
अपने शहरों को ज़रा गाँव तक लाकर देखो  

खुद बखुद आएगी बचपन की चमक आँखों में 
नाव कागज़ की कभी बारिश में चलाकर देखो

सच्चे भारत की तस्वीर बनाना चाहते हो तो 
दीवार नफरत की एक रोज गिरा कर देखो

मांगते रहोगे तो बस भीख ही मिल पायेगी 
अपने हक़ के लिए आवाज़ उठाकर देखो ....

सोमवार, 15 अगस्त 2011

क्या यही है आज़ादी ?? संध्या शर्मा

 
मेरी एक पुरानी रचना जिसे आप सभी के साथ फिर से साझा करना चाहती हूँ...

आज़ादी -आज़ादी ........
मनाते आ रहे हो 65 सालों से  जश्न ,
पर मैं पूछती हूँ ?
आज़ादी -आज़ादी कैसी आजादी....

कहने को तो  भारत माता मुक्त हुई,
गुलामी की जंजीरों से ,
माथे  की  चमकती  हुई बिंदिया,
और होठों पर फैली मुस्कराहट ..
सिर्फ ऊपर से ही दिखती है.

आतंकवाद, जातिवाद, नक्सलवाद, दहशतवाद,
सम्प्रदायवाद से घिरती जा रही है यह,
अन्याय, भ्रष्टाचार, अत्याचार के बोझ तले
दब गई है यह आज़ादी ...

क्यूँ जश्न मना कर करते हो फक्र ??
अब वह अंग्रेजो की गुलाम नहीं रही,
खुद अपनों की बनाई जंजीरों में जकड़ी जा रही है,
हमारी कुंठित मानसिकता, बेशर्मी ,
बेवफाई और बेहयाई  के चंगुल में तड़पती
इस आज़ादी को,
""क्या हम फिर से आज़ाद कर पाएंगे ?"
तो फिर कैसी है यह आज़ादी ? 
क्यूँ  है यह आज़ादी ??
किसके  लिए  आज़ादी ???"