बुधवार, 3 दिसंबर 2025

ये क्या है...? संध्या शर्मा

 ये क्या है?

ये पुलक है, ये झंकार है,

ये अधूरे बोलों का संचार है।

ये चुप्पी में सिमटा कोलाहल है,

ये मन से उठता हालाहल है।


ये क्या है?

ये प्राणों का प्रासाद है,

नभ के तारों का नीरव संवाद है।

ये अस्तित्व की साँस लेती रागिनी है,

ये क्षण भर में सदियों की यात्रा है।


ये क्या है?

ये रोम-रोम में बहती गंग है,

ये मौन के मुख से फूटा गीत अभंग है।

ये दो पल की ओस, सदियों का सागर,

ये तुम्हारे होने का अनूठा अहसास है।


ये क्या है?

ये प्रेम नहीं, प्रेम का सोत है,

ये दिया नहीं, स्वयं ज्योत है।

ये वेदना में पलता परमानंद है 

ये तुम हो... बस यही तो है।

बस चहुं ओर आनंद ही आनंद है।

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