लगभग एक साल होने को आया था कोरोना से बचते बचाते . इतने में घर के रिनोवेशन का काम भी चालू किया है, तो उसके लिए कई चीज़ों के चुनाव हेतु अनेकों बार बाज़ार जाना हो रहा था ! इसी समय कुछ लापरवाहियों का नतीज़ा था शायद शर्मा जी को बैक पेन और बोलने में हल्की खाँसी हो रही थी . डॉक्टर को तुरंत दिखाया गया दवा भी ली लेकिन न दर्द कम हुआ न खाँसी तो बेटे ने ज़िद की कि पापा का कोरोना टैस्ट करवाना ही है . जबकि वह दो तीन दिन पहले से ही करने बोल रहा था और हम लोग सोच रहे थे कि डॉक्टर को यदि ऐसा लगता तो वे बोलते !
आखिर अंशुल (क्योंकि अंशुल ड्राइव करके साथ में आ जा रहा था ) और शर्मा जी का टैस्ट हुआ और 26 फरवरी को अंशुल की rtpcr रिपोर्ट नेगेटिव और शर्मा जी की रिपोर्ट पॉज़िटिव आई ! सारे इंतेज़ाम किये गए . हम तीनों के कमरे अलग अलग कर दिए गए . फ़्लू के साथ मल्टीविटामिन और विटामिन सी के डोज़ शुरू कर दिए .
उसी दिन से मुझे भी हल्का 99.4 तक का बुख़ार आने लगा ! मुझे अस्थमा है तो पहले से ऑक्सीजन लेवल 94 -95% रहता था . 27 फरवरी को हमारा भी कोरोना टैस्ट पॉज़िटिव आ गया ! डॉक्टर ने वही दवाईयां शुरू कर दी ! ऑक्सीमीटर, थर्मामीटर, ग्लूकोमीटर और ब्लड प्रेशर मापक सभी की मॉनिटरिंग चल रही थी ! लेकिन हालत में कोई सुधार नहीं हो रहा था !
अंशुल की डॉक्टर मित्र और हमारी बेटी जैसी डॉक्टर दीपश्री बहुत चिंतित थी, पल - पल की जानकारी और हिदायतें दे रही थी !
आखिर दीपश्री ने ही हम दोनों के कोरोना से सम्बंधित कुछ ज़रूरी ब्लड टैस्ट करवाये ! टैस्ट रिपोर्ट में मेरा D Dimer सामान्य से चार गुना बढ़ा और शर्मा जी का भी सामान्य से ज्यादा आया !
इस रिपोर्ट के तुरंत बाद से दीपश्री के द्वारा बताये गए डॉक्टर मनोहर सारडा जी से फोन पर सलाह ली गई तथा हमारे नियमित फैमिली डॉक्टर जिनका इलाज़ चल रहा था उनसे भी विचार विमर्श के बाद हम दोनों को अस्पताल में भर्ती करके इलाज करने की सहमति हुई !
क्योंकि शर्मा जी डायबिटीज़ और मैं अस्थमा की मरीज हूँ !
हॉस्पिटल के नाम से मुझे बहुत डर लगता है (क्योंकि मेरी वेन्स बहुत पतली हैं और हॉस्पिटल में एडमिट होते ही सबसे पहले आई वी सैट लगाते हैं , जो मुझे बहुत दर्द देता है !)... ऊपर से कोरोना के मरीज का तो सालभर से देखते आ रहे थे! वापस आने का कोई भरोसा नहीं !
अंशुल मुझे समझा रहा था "पापा आपके लिए ही पॉज़िटिव हुए हैं , चिंता मत करना एक रूम में ही रखेंगे दोनों को "
छोटी बहन रेखा भी बोली "देख मैं तैयार हूँ न एडमिट करने को ! कुछ नहीं होगा तुम्हें ... इंजेक्शन देना पड़ेगा जो घर में नहीं दे सकते इसलिए हॉस्पिटल में रखना पड़ेगा"
उसकी और बेटे की हिम्मत ने उर्ज़ा प्रदान की ! हम दोनों के अलग अलग बैग पैक हुए और एक मार्च को शाम चार बजे एम्बुलेंस आ गई हमें लेने !
आवाज़ करती एम्बुलेंस अभी तक रास्ते पर ही देखी थी ! तब भी बहुत घबराहट होती थी उसकी आवाज़ से ! आज ख़ुद बैठे थे उसके स्ट्रेचर के बगल वाली सीट पर हम दोनों ! जगह नहीं हो रही थी तो ड्राइवर ने मुझसे कहा कि स्ट्रेचर पर बैठ जाइये पर मैं नहीं बैठी !
बीच - बीच में ऑक्सीजन के लिए भी पूछते रहे वो लोग |
लगभग आधे घंटे में हम हॉस्पिटल पहुँच गए ! अंशुल अलग से अपनी गाड़ी से आ गया था !
सारी फॉर्मेलिटी पूरी हुई और हमे एडमिट कर लिया गया ! तुरंत ही दोनो का सी टी स्कैन हुआ . शर्मा जी का स्कोर 10 और मेरा ज़ीरो था . लेकिन साँस लेने में तकलीफ़ हो रही थी !
एडमिट करने की प्रक्रिया पूरी होने के बाद नर्स हमें ऊपर रूम में ले जाने से पहले बोली "जाने से पहले आप लोग अपने बेटे से मिल लीजिये.... क्रमशः
कठिन समय की दास्तान ।
जवाब देंहटाएंओह! हतप्रभ करता हुआ जीवन्त चित्रण । परमात्मा से प्रार्थना है कि ऐसे ही कृपा रखे आप सबों पर । दीर्घायु रखे और स्वस्थ रखे ।
जवाब देंहटाएंसंध्या जी,सच कहा आपने, बड़ा डरावना होता है कोरोना संक्रमण का दौर ।
जवाब देंहटाएंबहुत कठिन समय था
जवाब देंहटाएंबहुत ही कठिन और कष्टप्रद समय ....
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