वो बुदबुदाती रहती है अकेली
जैसे खुद से कुछ कह रही हो
या दे रही हो, उलाहना ईश्वर को ??
स्वयं ही तो चुना था उसने
पति के जाने के बाद
पुत्र को विदेश भेजकर
अपने लिए यह अकेलापन
अपनी ही कोशिशों में विफल
दिखाई देती है आजकल
एक थकी हुई बेबस स्त्री
हाँ माँ कहना ज्यादा ठीक होगा
क्या है आखिर उसके मन में
नही कह पाती बेटे से भी जो
शायद वापसी की चाहत
अंतिम दिनों में जीना चाहती है
जी भरके अपनी संतान के साथ
पर डरती भी है मन ही मन
काश की ऐसे सर्द दिन हो
जम जाए फ़ासलों की नदी
सफ़ेद पारदर्शी राहों से होकर
पहुँच जाए उसकी हर पीड़ा
उसके बेटे तक ……!
सांसों का स्पंदन रहते तक !!!
हृदयस्पर्शी, गहरे उतरती अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंसुन्दर अभिव्यक्ति !
जवाब देंहटाएं......
जवाब देंहटाएंमाँ अपने लिए कभी कुछ नहीं कहती .... एक माँ की पिड़ा को सहीं रूप में सवारा हैं आपनें
जवाब देंहटाएंबच्चों की प्रगति की राहें बड़ों के लिए अकेलापन बन जाती है।
जवाब देंहटाएंमार्मिक !
hridaysprshi rachana....
जवाब देंहटाएंgehan abhivyakti.......
जवाब देंहटाएंमाँ का मन ही जानता है किन्तु मुख से कहती नहीं कभी - बहुत मार्मिक अभिव्यक्ति!
जवाब देंहटाएंमार्मिक रचना
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" गुरुवार 30 जून 2016 को में शामिल किया गया है।
जवाब देंहटाएंhttp://halchalwith5links.blogspot.in पर आप सादर आमत्रित है ......धन्यवाद !