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रविवार, 1 जून 2014

नियती...



नियती घट की
अंतिम बूंदों सी
विदा बेला पर
जीवन रेखा के
समाप्ति काल तक
ऐसे लगी रहेगी
दृष्टि उस द्वारे पर
जैसे कोई मोर
व्याकुल नेत्रों से
बैठ तकता है
घिर-घिर बरसते
रिक्त होते मेघ को
जैसे कोई चातक
प्यासा तरसता है
स्वाति की बूँद को
और ..........!
गुजर जाता है
एक महायुग...