
कब मेघ छाये
कब बरखा बरसे
चाहे यक्ष-प्रिया
मेघदूत को तरसे
मैं तो बरखा तब जानूं
जब भावमेघ कालिदास के
उमड़-घुमड़ छाएं
शब्दों की अमृत बूंदें
झूम-झूम बरसे
भर जाये ताल-तलैया
मनभावन रागों की
गीत-ग़ज़ल की
निर्मल सरिता बहे
हरषे जियरा
नाचे मन मोर
लिख दो हरियाली
चहुँ ओर
गाऊं होकर
प्रेम विभोर
छंद कालिदास के
बरसे घनघोर...