शुरू हो जाती है
क़वायद .... !
एक तरफ धरती की
दूसरी ओर इंसान की
धरा ढूंढती है कॉन्क्रीट के बीच
जल को आत्मसात करने की जगहें
और इंसान तलाशता है
पानी से बचने का ठौर
__संध्या शर्मा__
गहन क्षणिका । धरा पाट दी कंक्रीट से ।
अब तो कंक्रीट के जंगल ही ज्यादा उग रहे हैं, हरियाली न दम तोड़।
कंक्रीट का काल हरियाली निगल रहा है।
बेजोड़, सटीक ! इंसान का बनाया जाल है... बारिश क्या करे...।
जब बारिश आती है शुरू हो जाती हैक़वायद .... !साधुवाद..सादर..
वाह बहुत गहन बात कही!!सुन्दर रचना
बहुत सुंदर
बहुत सुंदर भाव
इंसान अपनी करनी को नहीं देखता , धरा को खुद से दूर किये जा रहा है
बहुत अच्छी और सुंदर रचना
गहन क्षणिका । धरा पाट दी कंक्रीट से ।
जवाब देंहटाएंअब तो कंक्रीट के जंगल ही ज्यादा उग रहे हैं, हरियाली न दम तोड़।
जवाब देंहटाएंकंक्रीट का काल हरियाली निगल रहा है।
जवाब देंहटाएंबेजोड़, सटीक ! इंसान का बनाया जाल है... बारिश क्या करे...।
जवाब देंहटाएंजब बारिश आती है
जवाब देंहटाएंशुरू हो जाती है
क़वायद .... !
साधुवाद..
सादर..
वाह बहुत गहन बात कही!!सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर भाव
जवाब देंहटाएंइंसान अपनी करनी को नहीं देखता , धरा को खुद से दूर किये जा रहा है
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी और सुंदर रचना
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